Friday 13 September 2013

केले के लाभ////Banana

                               केले के लाभ



वैसे तो केला बारह ही महीने बाजार में उपलब्ध रहता है। लेकिन बरसात के सीजन में ये शरीर के लिए विशेष लाभदायक होता है। कच्चा केला मीठा, ठण्डी तासीर का, भारी, स्निग्ध, कफकारक, पित्त, रक्त विकार, जलन, घाव व वायु को नष्ट करता है। पका हुआ केला स्वादिष्ट, शीतल, मधुर, वीर्यवर्ध्दक, पौष्टिक, मांस की वृध्दि करने वाला, रुचिकारक तथा भूख, प्यास, नेत्ररोग और प्रमेह का नाश करने वाला होता है।
- यदि महिलाओं को रक्त प्रवाह अधिक होता है तो पके केले को दूध में मसल कर कुछ दिनों तक खाने से लाभ होता है।
* बार-बार पेशाब आने की समस्या हो तो चार तोला केले के रस में दो तोला घी मिलाकर पीने से फायदा होता है।
* यदि शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो केले के गूदे को मसल कर जले हुए स्थान पर बांधे। इससे जलन दूर होकर आराम पहुंचता है।
* पेचिश रोग में थोड़े से दही में केला मिलाकर सेवन करने से फायदा होता है।
* संग्रहणी रोग होने पर पके केले के साथ इमली तथा नमक मिलाकर सेवन करें।
* दाद होने पर केले के गूदे को नींबू के रस में पीसकर पेस्ट बनाकर लगाएं।
* पेट में जलन होने पर दही में चीनी और पका केला मिलाकर खाएं। इससे पेट संबंधी अन्य रोग भी दूर होते हैं।
* अल्सर के रोगियों के लिये कच्चे केले का सेवन रामबाण औषधि है।
* केला खून में वृध्दि करके शरीर की ताकत को बढ़ाने में सहायक है। यदि प्रतिदिन केला खाकर दूध पिया जाए तो कुछ ही दिनों में व्यक्ति तंदुरुस्त हो जाता है।
* यदि चोट लग जाने पर खून का बहना न रुके तो उस जगह पर केले के डंठल का रस लगाने से लाभ होता है।
* केला छोटे बच्चों के लिये उत्तम व पौष्टिक आहार है। इसे मसल कर या दूध में फेंटकर खिलाने से लाभ मिलता है।
* केले और दूध की खीर खाने या प्रातः सायं दो केले घी के साथ खाने या दो केले भोजन के साथ घंटे बाद खाकर ऊपर से एक कप दूध में दो चम्मच शहद धोलकर लगातार कुछ दिन पीने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
* केले का शर्बत बनाकर पीने से सूखी खांसी, पुरानी खांसी और दमे के कारण चलने वाली खांसी में 2-2 चम्मच सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
* एक पका केला एक चम्मच घी के साथ 4-5 बूंद शहद मिलाकर सुबह-शाम आठ दिन तक रोजाना खाने से प्रदर और धातु रोग में लाभ होता है।
* पके केले को घी के साथ खाने से पित्त रोग शीघ्र शान्त होता है।
* मुंह में छाले हो जाने पर गाय के दूध के दही के साथ केला खाने से लाभ होता है।
* एक पका केला मीठे दूध के साथ आठ दिन तक तक लगातार खाने से नकसीर में लाभ होता है।
* दो केले एक तोला शहद में मिलाकर खाने से सीने के दर्द में लाभ होता है।
* दो पके केले खाकर, एक पाव गर्म दूध एक माह तक सेवन करने से दुबलापन दूर होकर शरीर स्वस्थ बनता है।
* प्रतिदिन भोजन के बाद एक केला खाने से मांसपेशियां मजबूत बनती है व ताकत देता है।
* प्रातः तीन केले खाकर, दूध में शक्कर व इलायची मिलाकर नित्य पीते रहने से रक्त की कमी दूर होती है।
* यदि बाल गिरते हों तो केले के गूदे में नींबू का रस मिलाकर सिर में लगाने से बाल झड़ना रूक जाता है।
* जलने या चोट लगने पर केले का छिलका लगाने से लाभ होता है।
* पके हुए केले को आंवले रस तथा शक्कर मिलाकर खाने बार-बार पेशाब आने की शिकायत होती है।
* बच्चे को दस्त लग जाने पर पके केले को कटोरी में रख कर चम्मच से घोट कर मक्खन जैसा बना लें और जरा सी मिश्री पीस कर मिला कर बच्चे को दिन में दो तीन बार खिलाएं। लाभ होगा, कमजोरी नहीं आएगी और बच्चे के शरीर में पानी की कमी नहीं हो पाएगी। ध्यान रहे कि केला जितनी बार खिलाना हो, उसे उसी समय बनाएं। ढक कर रखा गया या काट कर रखा केला न खिलाएं। वह हानिकारक हो सकता है। मिट्टी खाने के आदी बच्चों को इसका गूदा खूब फेंट कर जरा सा शहद मिला कर आधा आधा चम्मच खिलाना उपयोगी है। पर ध्यान रहे की शाम के बाद केला ना दे ।
* कोई भी चीज मात्रा से अधिक खाना पीना हानिकारक है। इसी तरह केला भी ज्यादा खाने से पेट पर भारी पड़ेगा, शरीर शिथिल होगा, आलस्य आएगा। कभी ज्यादा खा लिया जाए तो एक छोटी इलायची चबाना लाभकारी है।
* कफ प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। हमेशा पका केला ही खाएं।
* केले में मैग्नीशियम की काफी मात्रा होती है जिससे शरीर की धमनियों में खून पतला रहने के कारण खून का बहाव सही रहता है। इसके अलावा पूर्ण मात्रा में मैग्नीशियम लेने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है।
* कच्चे केले को दूध में मिलाकर लगाने से त्वचा निखर जाती है और चेहरे पर भी चमक आ जाती है।
* रोज सुबह एक केला और एक गिलास दूध पीने से वजन कंट्रोल में रहता है और बार- बार भूख भी नहीं लगती।
* गर्भावस्था में महिलाओं के लिए केला बहुत अच्छा होता है क्योंकि यह विटामिन से भरपूर होता है।
* गले की सुजन में लाभकारी है।
* जी-मिचलाने पर तो पका केला कटोरी में फेंट कर एक चम्मच मिश्री या चीनी और एक छोटी इलायची पीस कर मिला कर खाने से राहत मिलेगी।
* केले के तने के सफेद भाग के रस का नियमित सेवन डायबिटीज की बीमारी को धीरे-धीरे खत्म कर देता है।
* खाना खाने के बाद केला खाने से भोजन आसानी से पच जाता है।


पपीता - / Papaya

पपीता :_


इस पौष्टिक और रसीले फल से कई विटामिन मिलते हैं, नियमित रूप से खाने से शरीर में कभी विटामिन्स की कमी नहीं होती। बीमार व्यक्ति को दिए जाने वाले फलों में पपीता भी शामिल होता है, क्योंकि इसके एक नहीं, अनेक फायदे हैं। आसानी से अवशोषित होने से यह शरीर को काफी जल्दी फायदा पहुंचाता है। पपीता एक ऐसा फल है, जो कच्चा और पका हुआ दोनों ही रूप में खाया जाता है। कच्चा फल हरे रंग का दिखाई देता है, अधिकतर इसकी सब्जी बनाई जाती है। फल के रूप में ज्यादातर पका हुआ पपीता ही खाया जाता है। क्या-क्या मिलता है? प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, बी और सी के साथ ही कुछ मात्रा में विटामिन-डी भी मिलता है। पपीता पेप्सिन नामक पाचक तत्व का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है। इसमें कैल्शियम और कैरोटीन भी अच्छी मात्रा में मिलता है। इसके अलावा फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट्स, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। पपीता सालभर बाजार में उपलब्ध होता है। पपीता के गुण पपीता पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे पाचन तंत्र ठीक रहता है और पेट के रोग भी दूर होते हैं। पपीता पेट के तीन प्रमुख रोग आम, वात और पित्त तीनों में ही राहत पहुंचाता है। यह आंतों के लिए उत्तम होता है। पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन-ए होता है। इसलिए यह आंखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी तो अच्छी होती ही है, त्वचा भी स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है। पपीते में कैल्शियम भी खूब मिलता है। इसलिए यह हड्डियां मजबूत बनाता है। यह प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है। पपीता फाइबर का अच्छा स्रोत है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कैंसर रोधी और हीलिंग प्रॉपर्टीज भी होती है। जिन लोगों को बार-बार सर्दी-खांसी होती रहती है, उनके लिए पपीते का नियमित सेवन काफी लाभकारी होता है। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है। इसमें बढ़ते बच्चों के बेहतर विकास के लिए ज़रूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। शरीर को पोषण देने के साथ ही रोगों को दूर भी भगाता है।

आलू / Potato

आलू के औषधीय प्रयोग ---------------
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1.बेरी-बेरी:-बेरी- बेरी का सरलतम् सीधा-सादा अर्थ है-”चल नहीं सकता” इस रोग से जंघागत नाड़ियों में कमजोरी का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर या दबाकर रस निकालें, एक चम्मच की मात्रा के हिसाब से प्रतिदिन चार बार पिलाएं। कच्चे आलू को चबाकर रस निगलने से भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

2.रक्तपित्त :-यह रोग विटामिन “सी” की कमी से होता है। इस रोग की प्रारिम्भक अवस्था में शरीर ए
वं मन की शक्ति कमजोर हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द तथा पीला-सा दिखाई देता है। थोड़े-से परिश्रम से ही सांस फूल जाती है। मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोमकूपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने (खून बहने) लगता है। बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं फिर धड़ की त्वचा पर भी रोमकूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदुरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में-अति किरेटिनता (हाइपर केराटोसिस) हो जाता है। मसूढ़े पहले ही सूजे हुए होते हैं और इनसे खून निकलने लगता है बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों विशेषकर प्रसारक पेशियों से रक्तस्राव होने लगता है और तेज दर्द होता है। हृदय मांस से भी स्राव होकर हृदय शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। हडि्डयों की कमजोरी और पूयस्राव भी बहुधा विटामिन “सी” की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।

3.त्वचा की झुर्रियां:-सर्दी से ठंडी सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलना गुणकारी हैं। नींबू का रस भी इसके लिए समान रूप से उपयोगी है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं।

4.गौरवर्ण, गोरापन:-आलू को पीसकर त्वचा पर मलने से रंग गोरा हो जाता है।

5.आंखों का जाला एवं फूला:-कच्चा आलू साफ-स्वच्छ पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम आंख में काजल की भांति लगाने से पांच से छ: वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला तीन महीने में साफ हो जाता है।

6.मोटापा:-आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है। सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6-7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है।

7.बच्चों का पौष्टिक भोजन:-आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं।

आलू का रस निकालने की विधि :
आलू को ताजे पानी से अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को 1 घंटे तक ढंककर रख दें। जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।"

8.सूजन:-कच्चे आलू को सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलू का हो, उसके लगभग 2 गुना पानी में उसे उबालें। जब मात्र एक भाग पानी शेष रह जाए तो उस पानी से चोट से उत्पन्न सूजन वाले अंग को धोकर सेंकने से लाभ होगा।

नोट : गुर्दे या वृक्क (किडनी) के रोगी भोजन में आलू खाएं। आलू में पोटैशियम की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटैशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है। इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में सन्तुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) यानि चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।"

9.उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर):-इस बीमारी के रोगियों को आलू खाने से रक्तचाप को सामान्य बनाने में अधिक लाभ प्राप्त होता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। (छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है।) और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है।

10.अम्लता (एसीडिटी):-आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। जिन रोगियों के पाचन अंगों में अम्लता की अधिकता है, खट्टी डकारें आती है और वायु (गैस) अधिक बनती है, उनके लिए गरम-गरम राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत ही लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधे समय में पच जाता है। यह पुरानी कब्ज और अन्तड़ियों की दुंर्गध को दूर करता है.


शरीफा

शरीफा : सिर्फ फल नहीं, औषधि भी



शरीफा : सिर्फ फल नहीं, औषधि भी शरीफा (सीताफल) एक मीठा फल है. इसमें काफी मात्र में कैलोरी होती है. यह आसानी से हजम होनेवाला और अल्सर व अम्ल पित्त के रोग में ज्यादा लाभकारी होता है. इसमें आयरन और विटामिन-सी का एक अच्छा स्रोत है.
कई रोगों में रामबाण
फोड़ा: शरीफा के पत्तों को पीस कर फोड़ों पर लगाने से फोड़े ठीक हो जाते हैं.
शरीर की जलन : शरीफा सेवन करने या इसके गूदे से बने शरबत शरीर की जलन को ठीक करता है.
बालों के रोग : शरीफा के बीजों को बकरी के दूध के साथ पीस कर बालों में लगाने से सिर के उड़े हुए बाल फिर से उग आते हैं.
जूओं का पड़ना : शरीफा के बीजों को बारीक पीस कर रात को सिर में लगा लें और किसी मोटे कपड़े से सिर को अच्छी तरह बांध कर सो जाएं. इससे जुएं मर जाती हैं. इस बात का ध्यान रखें कि यह आंखों तक न पहुंचे, क्योंकि इससे आंखों में जलन व अन्य नुकसान हो सकता है.शरीफा के पत्तों का रस बालों की जड़ो में अच्छी तरह मालिश करने से जुएं मर जाती हैं.
अतिसार: सीताफल का कच्चा फल खाना अतिसार और पेचिश में उपयोगी है. श्रेष्ठ फल ही नहीं, औषधि भी शरीर की दुर्बलता, थकान, मांस-पेशियां क्षीण होने की दशा में सीताफल का सेवन करने से मांसवृद्धि होती है. यह शरीर के लिए अत्यंत श्रेष्ठ फल है. घबराहट, हृदय की क्रिया को स्वाभाविक बना देता है. इसकी एक बड़ी किस्म और होती है, जिसे रामफल कहते हैं. व्रत के दिनों में फलाहार के रूप में इसे खाते
हैं. पूरक आहार के रूप में इसका सेवन किया जाता है.


आंबा हल्दी से उपचार

आंबा हल्दी से उपचार: ----------
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परिचय :आंबा हल्दी के पेड़ भी हल्दी की ही तरह होते हैं। दोनों में अंतर यह है कि आंबा हल्दी के पत्ते लम्बे तथा नुकीले होते हैं। आंबा हल्दी की गांठ बड़ी और भीतर से लाल होती है, किन्तु हल्दी की गांठ छोटी और पीली होती है। आंबा हल्दी में सिकुड़न तथा झुर्रियां नहीं होती हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :-

संस्कृत दार्वी, मेदा, आम्रगन्धा, सुरभीदारू, दारू, कर्पूरा, पदमपत्र।
हिंदी कपूर हल्दी, आंबिया हल्दी।
बंगाली आमआदा।
मराठी आबे हल्द।
गुजराती आंबा हल्दर।
तेलगू पालुपसुप।
अंग्रेजी मैंगों जिंजर।
लैटिन करक्यूमा एरोमोटिका


रंग : आंबा हल्दी लालिमा लिए हुए पीली रंग की होती है।

स्वाद :यह कड़वी और तेज होती है।

स्वरूप : यह एक पेड़ की जड़ है जो मिट्टी में उगती है।

स्वभाव : इसकी तासीर गरम होती है।

हानिकारक : आंबा हल्दी का अधिक मात्रा में सेवन हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है।

मात्रा : इसका सेवन चार ग्राम की मात्रा में कर सकते हैं।

गुण : यह वायु को शांत करती है, पाचक है, पथरी को तोड़ने वाली, पेशाब की रुकावट को खत्म करने वाली, घाव और चोट में लाभ करने वाली, मंजन करने से मुंह के रोगों को खत्म करने वाली है। यह खांसी, सांस और हिचकी में लाभकारी होती है।

विभिन्न रोगों में आंबा हल्दी से उपचार:

1 सूजन पर: - आंबा हल्दी को ग्वारपाठा (ऐलोवेरा) के गूदे पर डालकर कुछ गरम करके बांधने से सूजन दूर होती है तथा घाव को भरती है।

2 शीतला (मसूरिका) ज्वर के निशान होने पर: - आमाहल्दी, सरकण्डे की जड़ और जलाई हुई कौड़ी को कूटकर छान लें। फिर भैंस के दूध में मिलाकर रात के समय चेहरे पर लगाकर सो जायें। पानी में भूसी को भिगो दें। सुबह और शाम उसी भूसी वाले पानी से मुंह को धोने से माता के द्वारा आने निशान (दाग-धब्बे) दूर हो जाते हैं।

3 चोट लगने पर: - *चोट सज्जी, अम्बा हल्दी 10-10 ग्राम को पानी में पीसकर कपड़े पर लगाकर चोट (मोच) वाले स्थान पर बांध दें।
*आंबा हल्दी को पीसकर, गरम करके बांधने से चोट को अच्छा करती है तथा सूजन दूर होती है।
*पपड़िया कत्था 20 ग्राम अम्बा हल्दी 20 ग्राम कपूर, लौंग 3-3 ग्राम पानी में पीसकर चोट मोच पर लगाकर पट्टी बांध दें।
*अम्बाहल्दी, मुरमक्की, मेदा लकड़ी 10-10 ग्राम लेकर पानी में पीसकर हल्का गर्म कर चोट पर लगायें।"

4 घाव: - अम्बाहल्दी, चोट सज्जी 10-10 ग्राम पीसकर 50 मिलीलीटर गर्म तेल में मिला दें। ठंडा होने पर रूई भिगोकर घाव, जख्म पर बांध दें।

5 हड्डी कमजोर होने पर:- *चौधारा, अम्बा हल्दी 10-10 ग्राम पीसकर घी में भून लें। उसमें सज्जी और सेंधानमक 5-5 ग्राम पीसकर मिला लें। फिर टूटी हड्डी और गुम चोट पर बांधने से लाभ होता है।
*अम्बा हल्दी 3-3 ग्राम पानी से सुबह-शाम लें और मैदालकड़ी, कुरण्ड, चोट सज्जी, कच्ची फिटकरी, अम्बा हल्दी 10-10 ग्राम पानी में पीसकर कपड़े पर फैलाकर चोट पर रखकर रूई लगाकर बांध दें।"

6 गिल्टी (ट्यूमर): - *आमाहल्दी, अलसी, घीग्वार का गूदा और ईसबगोल को पीसकर एक साथ मिलाकर आग पर गर्म करने के बाद गिल्टी पर लगाने से लाभ होता है और सूजन मिट जाती है।
*10 ग्राम आमाहल्दी, 6 ग्राम नीलाथोथा, 10 ग्राम राल, 6 ग्राम गूगल और 10 ग्राम गुड़ इसमें से सूखी वस्तुओं को पीसकर और उसमें गुड़ मिलाकर बांधें तो आराम होगा और जल्द ही फूट जायेगा।
*आमाहल्दी, चूना और गुड़ सबको एक ही मात्रा में लेकर पीसे और बद पर लेप कर दें। इससे गिल्टी जल्द फूट जायेगी। "

7 पेट में दर्द होने पर: - आमाहल्दी और कालानमक को मिलाकर पानी के साथ पीने से पेट के दर्द में आराम होता है।

8 उपदंश (फिरंग) रोग : - आमाहल्दी, राल और गुड़ 10-10 ग्राम, नीलाथोथा और गुग्गुल 6-6 ग्राम इन सबको मिलाकर पीस लें और बद पर बांधे इससे तुरन्त लाभ मिलता है।

9 पीलिया रोग: - सात ग्राम आमाहल्दी का चूर्ण, पांच ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह और शाम सात दिन तक खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।

10 खाज-खुजली और चेहरे का काला दाग:- आमाहल्दी को पीसकर शरीर में जहां पर खाज-खुजली हो वहां पर लगाने से आराम आता है। 

भिन्डी

भिन्डी --


- भिन्डी में विटामिन ए, बी, सी बहुत ही प्रचुर मात्रा में पाया जाता है .इसमे प्रोटीन और खनिज लवणों का एक अच्छा स्रोत है .
- भिन्डी गैस्टिक , अल्सर के लिए प्रभावी दवा हैं . 
- मृदुकारी भिन्डी संवेदनशील बड़ी आंत की सतह की रक्षा करती हैं .जिससे ऐठन रुक जाती हैं .इसके सेवन से आंत में जलन नहीं होती हैं . 
- भिन्डी के लस के नियमित सेवन से गले , पेट .मलाशय और मूत्रमार्ग में जलन नहीं होती हैं . 
- भिन्डी का काढ़ा पीने से सुजाक, मूत्रकृच्छ, और ल्यूकोरिया में फायदा होता हैं .
- बीजरहित ताजा दो भिन्डी प्रतिदिन खाने से श्वेतप्रदर, नंपुसकता, धातु गिरना रोकने में सहायक हैं .
- इसमें मौजूद विटामिन बी , गर्भ को बढ़ने में मदद करता है और जन्मजात विकृतियों को रोकता है.
- मधुमेह में इसके रेशे ब्लड शुगर को नियंत्रित रखते है.
- इसका विटामिन सी श्वास रोगों से बचाता है.
- इसके सेवन से त्वचा अच्छी दिखती है. भिन्डी को उबाल कर , मसल कर इसे त्वचा पर थोड़ी देर लगा कर रखे. धोने के बाद आप पायेंगे की त्वचा बहुत मुलायम और ताजगी भरी लग रही है.
- इसका सेवन कालोन कैंसर से बचाता है. इसका विटामिन ए म्यूकस मेम्ब्रेन बनाने में मदद करता है , जिससे पाचन क्रिया बेहतर होती है.
- इसके नियमित सेवन से किडनी की सेहत में सुधार होता है.
- मोटापे को दूर करता है. कई बार शरीर में विटामिन्स की कमी से ज़्यादा खाने का मन करता है. इसलिए भिन्डी में मौजूद विटामिन्स उसकी कमी को दूर कर अनावश्यक भूक को मिटाते है.
- इसका विटामिन के हड्डियों को मज़बूत बनाता है. यह रक्त की कमी को भी दूर करता है.
- कोलेस्ट्रोल को कम करती है.
- इसके विटामिन्स आँखों , बाल और इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाते है.
- यह गर्मी से बचाती है


Monday 2 September 2013

Nokia to sell its Devices & Services business and licence its patents to Microsoft in €5.44 billion all-cash transaction

Nokia Corporation on Tuesday announced that it has signed an agreement to sell substantially all of its Devices & Services business and licence its patents to Microsoft for €5.44 billion in cash. It expects to gain €3.2 billion from the deal.
The transaction is expected to close in the first quarter of 2014, subject to approval by Nokia shareholders, regulatory approvals and other customary closing conditions. After the deal closure Nokia Chief Executive Stephen Elop, will move to Microsoft Corp. Nokia board Chairman Risto Siilasmaa will take over CEO duties while the Finnish firm is looking for a new CEO.
“After a thorough assessment of how to maximize shareholder value, including consideration of a variety of alternatives, we believe this transaction is the best path forward for Nokia and its shareholders,” said Risto Siilasmaa, Chairman of the Nokia Board of Directors and interim CEO, following Tuesday’s 
announcement.

Thursday 8 August 2013

काली मिर्च Black pepper

काली मिर्च --Black pepper

- लाल मिर्च की अपेक्षा यह कम दाहक और अधिक गुणकारी है। इसीलिए मसाले में लाल मिर्च की बजाय काली मिर्च का उपयोग प्रचलित है। काली मिर्च का योग्य रीति से उपयोग किया जाए तो वह रसायन गुण देती है। आयुर्वेद में काली मिर्च को सभी प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस आदि का नाश करने वाली औषधि माना जाता है।
- यूनानी मतानुसार काली मिर्च उदरपीड़ा, डकार और अफारा मिटाकर कामोत्तेजना एवं विरेचन करती है। अरुचि, जीर्ण ज्वर, दांत दर्द, मसूड़ों की सूजन, पक्षाघात, नेत्ररोग आदि पर भी यह हितकारी है।
- जुकाम होने पर काली मिर्च मिलाकर गर्म दूध पीएं। यदि जुकाम बार-बार होता है, अक्सर छीकें आती हैं तो काली मिर्च की संख्या एक से शुरू करके रोज एक बढ़ाते हुए पंद्रह तक ले जाए फिर प्रतिदिन एक घटाते हुए पंद्रह से एक पर आएं। इस तरह जुकाम एक माह में समाप्त हो जाएगा।
- खांसी होने पर आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण और आधा चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटें। खांसी दूर हो जाएगी।
- गैस की शिकायत होने पर एक कप पानी में आधे नीबू का रस डालकर आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण व आधा चम्मच काला नमक मिलाकर नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से गैस की शिकायत दूर हो जाती है।
गला बैठना : काली मिर्च को घी और मिश्री के साथ मिलाकर चाटने से बंद गला खुल जाता है और आवाज़ सुरीली हो जाती है। आठ-दस काली मिर्च पानी में उबालकर इस पानी से गरारे करें, इससे गले का संक्रमण खत्म हो जाएगा।
त्वचा रोग : काली मिर्च को घी में बारीक पीसकर लेप करने से दाद-फोड़ा, फुंसी आदि रोग दूर हो जाते हैं। 
- आधा चम्मच पिसी काली मिर्च थोड़े- से घी के साथ मिला कर रोजाना सुबह-शाम नियमित खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
- पेट में कीड़े की समस्या से ग्रस्त हैं तो काली मिर्च को किशमिश के साथ 2-3 बार चबाकर खा जाएं। एक गिलास छाछ में थोड़ी सा काली मिर्च का पाउडर मिलाकर पीने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैं।
- दांतों में होने वाले रोग पायरिया से परेशान हैं और दांत कमजोर हैं तो काली मिर्च को नमक के साथ मिलाकर दांतों पर लगाएं, जल्द ही लाभ होगा।
- गठिया के रोगियों के लिए भी काली मिर्च काफी फायदेमंद साबित होती है। काली मिर्च को तिल के तेल में जलने तक गर्म करें। उसके बाद ठंडा होने पर उस तेल को मांसपेशियों पर लगाएं, दर्द में आराम मिलेगा।
- आपकी याददाश्त कमजोर है तो काली मिर्च को शहद में मिलाकर खाएं।
- यदि पेट में कांटा, कांच का टुकडा आदि खाने के साथ या किसी भी भांति चला जाए तो पके हुए अनन्नास के साथ काली मिर्च और सेधा नमक लगाकर खाने से पेट में गया हुआ कांच या कांटा निकल जाता है। 
- कब्ज होने पर काली मिर्च के चार-पांच साबुत दाने दूध के साथ रात को लेने से कब्ज में लाभ मिलता है।
- मलेरिया होने पर काली मिर्च के चूर्ण को तुलसी के रस में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- काली मिर्च में मौजूद पिपराइन नामक यौगिक त्वचा में पिगमेंट बनाने में सहायक होता है जिससे ही त्वचा का रंग निर्धारित होता है। पिपराइन त्वचा में न केवल पिगमेंट के बनने की गति को तीव्र कर देता है बल्कि विटिलिगो के कास्मेटिक्स से किए जाने वाले इलाज की अपेक्षा कहीं ज्यादा कारगर साबित होता है। इससे भविष्य में विटिलिगो के इलाज में और भी दवाएं बनाई जा सकेंगी। 
- यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो दिन में दो-तीन बार पांच दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे। 
- यह एक बढिय़ा एंटीऑक्सीडेंट है। यह मैंगनीज और आयरन जैसे पोषक तत्वों का बढिय़ा स्रोत है, जो शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक है।
- - काली मिर्च को सुई से छेद कर दीये की लौ से जलाएं। जब धुआं उठे तो इस धुएं को नाक से अंदर खीच लें। इस प्रयोग से सिर दर्द ठीक हो जाता है। हिचकी चलना भी बंद हो जाती है। - काली मिर्च 20 ग्राम, जीरा 10 ग्राम और शक्कर या मिश्री 15 ग्राम कूट-पीस कर मिला लें। इसे सुबह -शाम पानी के साथ फांक लें। बवासीर रोग में लाभ होता है।

अरबी////Arabic

आदिवासियों की खास औषधि है अरबी, आजमाएं और देखें चमत्कारी असर
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भारत के अनेक प्राँतो में अरबी या घुईयाँ की खेती इसके कंद के लिए की जाती है। अरबी भारतीय किचन की एक प्रचलित सब्जी भी है। अरबी का वानस्पतिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेंटा है। अरबी के पत्तों से बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है। इसकी पत्तियों में प्रमुख तौर पर विटामिन A, B, C के अलावा कैल्शियम और पोटेशियम पाया जाता है। इसके कंदों में प्रोटीन, स्टार्च, विटामिन A, B, C और E के अलावा पोटेशियम, मैंग्नीज, फोस्फोरस और मैग्नेशियम पाया जाता है। आदिवासियों के अनुसार अरबी का कभी भी कच्चा सेवन नहीं करना चाहिए, इसकी पत्तियों और कंदो को भलिभांति उबालकर ही उपयोग में लाना चाहिए। आदिवासी भी इस पौधे की पत्तियों और कंदों को तमाम रोगों के इलाज के लिए हर्बल नुस्खों के तौर पर अपनाते हैं, चलिए आज जानते है अरबी से जुडे आदिवासी हर्बल नुस्खों को..

अरबी के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

अरबी का कंद शक्ति और वीर्यवर्धक होता है वहीं इसकी पत्तियाँ शरीर को मजबूत बनाती हैं। अरबी के कंदों और पत्तियों की साग बलबर्धक होती है। अच्छी तरह से उबले कंदों को नमक मिलाकर खाया जाए तो वीर्य पुष्ठी होती है, ऐसा दावा आदिवासी करते हैं।

आदिवासी हर्बल जानकारों की मानी जाए तो अरबी के कंदों की सब्जी का सेवन प्रतिदिन करने से हृदय भी मजबूत होता है। प्रतिदिन अरबी की सब्जी का सेवन उच्च-रक्तचाप में भी काफी उपयोगी है।

अरबी की पत्तियों की डंठल को तोडकर जलाया जाए और इसकी राख को नारियल के तेल के साथ मिलाकर फ़ोडों और फ़ुन्सियों पर लेपित किया जाए तो काफी फ़ायदा होता है।

प्रसव के बाद माताओं में दूध की मात्रा कम बनती हो तो अरबी की पत्तियों की साग या कंदो की सब्जी प्रतिदिन देने से अतिशीघ्र फ़ायदा होता है।

इसके पत्तों में बेसन लगाकर भजिये तैयार किए जाते है और माना जाता है कि ये भजिये वात रोग और जोड दर्द से परेशान रोगियों के लिए उत्तम होते है, आर्थरायटिस रोग से त्रस्त व्यक्ति को ये भजिए जरूर खाना चाहिए।

अरबी के पत्ते डण्ठल के साथ लिए जाए और पानी में उबालकर पानी को छान लिया जाए, इस पानी में उचित मात्रा में घी मिलाकर 3 दिनों तक दिन में दो बार दिया जाए तो लंबे समय से चली आ रही गैस की समस्या में फ़ायदा होता है।

करौंदा......////// Gooseberry

करौंदा ---Gooseberry


कच्चा करौंदा खट्टा और भारी होता है। प्यास को शान्त करने में अति उत्तम है। रक्त पित्त को हरता है, गरम तथा रूचिकारी होता है। पका करौंदा, हल्का मीठा रूचिकर और वातहारी होता है। करोंदा में व्याप्त दोषों को नमक, मिर्च और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं। 
- कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। 
- इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।
- फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। - करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। ख़ासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक है।
- सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस का सेवन लाभकारी होता है।
- पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जड़ों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
- खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।
- करोंदा के फल को खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है। 
- सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
- घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ़ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।
- ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
- खांसी में करौंदे के पत्तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
- जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तीन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
- करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहले मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।
- करौंदे का रस हाय ब्लड प्रेशर को कम करता है .
- करौंदे का सेवन करने के महिलाओं की मुख्य समस्या 'रक्तहीनता' (एनीमिया) से छूटकारा पाया जा सकता है ।


Friday 19 July 2013

लहसुन सिर्फ मसाला नहीं है, आयुर्वेद में बताया है ये इन बड़ी बीमारियों में रामबाण दवा है/Garlic is not just the spice, is described in Ayurveda is the panacea for these major diseases

लहसुन सिर्फ मसाला नहीं है, आयुर्वेद में बताया है ये इन बड़ी बीमारियों में रामबाण दवा है/Garlic is not just the spice, is described in Ayurveda is the panacea for these major diseases

लहसुन सिर्फ मसाले के रूप में खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाती बल्कि अब तों वैज्ञानिक भी मानने लगे है कि लहसुन कई बीमारियों में लाभदायक औषधि की तरह काम करता है।जर्मनी की हेल्थ एडवाइस एसोसिएशन की माने तो यदि लहसुन को बेहद कम मात्रा में खाया जाता है, इस...के लाभकारी त्तत्वों का फायदा नहीं मिलता। इसमे पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए,सी व सल्फाइड भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। लहसुन के ऐसे ही कुछ जबरदस्त औषधिय गुणों का वर्णन आयुर्वेद में भी मिलता है हम आपको बताने जा रहे हैं आयुर्वेद के खजाने से कुछ खास नुस्खे जो बीमारियों में रामबाण की तरह काम करते हैं।

लहसुन में पाए जाने वाले तत्व - लहसुन में प्रोटीन 6.3 प्रतिशत,वसा 0.1 प्रतिशत, कार्बोज 21 प्रतिशत, खनिज पदार्थ- 1 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा लोहा 1.3 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी एवं सल्फ्यूरिक एसिड विशेष मात्रा में पाई जाती है।

दांतों के दर्द में फायदेमंद
आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन लहसुन के सेवन से दांतों के दर्द में आराम मिलता है। लहसुन को लौंग के साथ पीसकर दांतों के दर्द वाले हिस्से पर लगाने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।

एंटीबायोटिक की तरह असरदार
लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है। चाय में अदरक के साथ लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से अस्थमा की परेशानी को कम किया जा सकता है।

कैंसर से रक्षा करता है
कैंसर को एक लाइलाज बीमारी माना जाता है। लेकिन शायद आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आयुर्वेद के अनुसार रोजाना थोड़ी मात्रा में लहसुन का सेवन करने से कैंसर होने की संभावना अस्सी प्रतिशत तक कम हो जाती है।कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढऩे से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

कफ में लहसुन लाभदायक
ठंड या बदलते मौसम में अक्सर किसी भी उम्र के लोगों को कफ और जुकाम जैसी परेशानी हो जाती हैं। ऐसे में अगर आप लहसुन का नियमित रूप से सेवन करते हैं तो आप ऐसी छोटी-छोटी समस्याओं से बड़ी ही आसानी से निजात पा सकते हैं।

कॉलेस्ट्रोल को कम करता है
कॉलेस्ट्रोल की समस्या से परेशान लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीडि़त लोगों के लिए लहसुन किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। रोजाना इसे खाने से आपका कॉलेस्ट्रोल लेवल 12 प्रतिशत तक कम हो सकता है।इसे खाने से दिल की बीमारियों को दूर रखा जा सकता है।

विटामिन सी की कमी होने पर
जिनके शरीर में रक्त की कमी है, उन्हें लहसुन का सेवन अवश्य करना चाहिए, इसमें पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व होता है जो कि रक्त निर्माण में सहायक होता है। लहसुन में विटामिन सी होने से यह स्कर्वी रोग से भी बचाता है।

मुहांसों का पक्का इलाज
मुंहासों से परेशान लोगों के लिए ये काफी कारगर साबित होता है। इसे खाने से खून साफ होता है।गला खराब होने पर गुनगुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारा करने से राहत मिलती है। मौसम में बदलाव आने के साथ इसके सेवन की मात्रा में भी बदलाव करें सर्दी के मौसम में लहसुन का अधिक मात्रा में सेवन किया जा सकता है। लेकिन गर्मी के मौसम में इसका अधिक मात्रा में सेवन ना करें। लहसुन को आप कच्चा भी खा सकते हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद
गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए।

Saturday 6 July 2013

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects
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माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना

1. किशमिश: पुरानी किशमिश को 3 ग्राम
की मात्रा में लेकर इसे लगभग 200 मिलीलीटर पानी में
रात को भिगोकर रख दें। सुबह इसे उबालकर रख लें। जब
यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर सेवन
करने से मासिक-धर्म के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

2. तिल: काले तिल 5 ग्राम को गुड़ में मिलाकर
माहवारी (मासिक) शुरू होने से 4 दिन पहले सेवन
करना चाहिए। जब मासिक धर्म शुरू हो जाए तो इसे बंद
कर देना चाहिए। इससे माहवारी सम्बंधी सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं।
लगभग 8 चम्मच तिल, एक गिलास पानी में गुड़ या 10 कालीमिर्च को (इच्छानुसार) पीसकर गर्म कर लें।
आधा पानी बच जाने पर 2 बार रोजाना पीयें, यह मासिक-
धर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिकस्राव तक सेवन
करें। ऐसा करने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
14 से 28 मिलीलीटर बीजों का काढ़ा एक ग्राम मिर्च
के चूर्ण के साथ दिन में तीन बार देने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
तिल, जौ और शर्करा का चूर्ण शहद में मिलाकर
खिलाने से प्रसूता स्त्रियों की योनि से खून
का बहना बंद हो जाता है।

3. ज्वार: ज्वार के भुट्टे को जलाकर इसकी राख को छान
लें। इस राख को 3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह
पहले देना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए
तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

4. चौलाई: चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक
पीस लें। इसे लगभग 5 ग्राम मात्रा में सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिनों पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

5. असगंध: असगंध और खाण्ड को बराबर मात्रा में लेकर
बारीक पीस लें, फिर इसे 10 ग्राम लेकर पानी से
खाली पेट मासिक धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिन पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

6. रेवन्दचीनी: रेवन्दचीनी 3 ग्राम की मात्रा में सुबह के
समय खाली पेट माहवारी (मासिक धर्म) शुरू होने से
लगभग 7 दिन पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू
हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे
मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

7. कपूरचूरा: आधा ग्राम कपूरचूरा में मैदा मिलाकर 4
गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक
गोली का सेवन माहवारी शुरू होने से लगभग 4 दिन पहले
स्त्री को सेवन करना चाहिए। मासिक-धर्म शुरू होने के
बाद इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

8. राई: मासिक-धर्म में दर्द होता हो या स्राव कम
होता हो तो गुनगुने पानी में राई के चूर्ण को मिलाकर,
स्त्री को कमर तक डूबे पानी में बैठाने से लाभ होता है।

9. मूली: मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ 3-3
ग्राम सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) का अवरोध नष्ट
होता है। सुरेश चौहान

10. अडूसा (वासा): अड़ूसा के पत्ते ऋतुस्त्राव
(मासिकस्राव) को नियंत्रित करते हैं। रजोरोध
(मासिकस्राव अवरोध) में वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व
गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को 500
मिलीलीटर पानी में पका लें। चतुर्थाश शेष रहने पर यह
काढ़ा कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

11. कलौंजी: 2-3 महीने तक भी मासिक-धर्म के न होने
पर और पेट में भी दर्द रहने पर एक कप गर्म पानी में
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 2 चम्मच शहद
मिलाकर सुबह-शाम को खाना खाने के बाद सोते समय 30
दिनों तक पियें। नोट: इस प्रयोग के दौरान आलू और
बैगन नहीं खाना चाहिए। सुरेश चौहान

12. विदारीकन्द: विदारीकन्द का चूर्ण 1 चम्मच और
मिश्री 1 चम्मच दोनों को पीसकर 1 चम्मच घी के साथ
मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से मासिक-धर्म
में अधिक खून आना बंद होता है।
विदारीकन्द के 1 चम्मच चूर्ण को घी और चीनी के साथ
मिलाकर चटाने से मासिक-धर्म में अधिक खून आना बंद हो जाता है।

13. उलटकंबल: उलटकंबल की जड़ की छाल का गर्म
चिकना रस 2 ग्राम की मात्रा में कुछ समय तक रोज देने
से हर तरह के कष्ट से होने वाले मासिक-धर्म में लाभ
मिलता है।सुरेश चौहान
उलटकंबल की जड़ की छाल को 6 ग्राम लेकर 1 ग्राम
कालीमिर्च के साथ पीसकर रख लें। इसे मासिक धर्म से 7 दिनों पहले से और जब तक मासिक-धर्म होता रहता है
तब तक पानी के साथ लेने से मासिक-धर्म नियमित
होता है। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भाशय
को शक्ति प्राप्त होती है।
अनियमित मासिक-धर्म के साथ ही, गर्भाशय, जांघ
और कमर में दर्द हो तो उलटकंबल की जड़ का रस 4 ग्राम निकालकर चीनी के साथ सेवन करने से 2 दिन में ही लाभ
मिलता है।
उलटकंबल की 50 ग्राम सूखी छाल को जौ कूट
यानी पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर
काढ़ा तैयार करें। यह काढ़ा उचित मात्रा में दिन में 3 बार
लेने से कुछ ही दिनों में मासिक-धर्म नियमित समय पर होने लग जाता है। इसका प्रयोग मासिक धर्म शुरू होने
से 7 दिन पहले से मासिक-धर्म आरम्भ होने तक दें।
उलटकंबल की जड़ की छाल का चूर्ण 4 ग्राम और
कालीमिर्च के 7 दाने सुबह-शाम पानी के साथ मासिक-
धर्म के समय 7 दिन तक सेवन करें। 2 से 4 महीनों तक
यह प्रयोग करने से गर्भाशय के सभी दोष मिट जाते हैं। यह प्रदर और बन्ध्यत्व की सर्वश्रेष्ठ औषधि है। सुरेश चौहान

14. अनन्नास: अनन्नास के कच्चे फलों के 10
मिलीलीटर रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1
ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक-धर्म की रुकावट
दूर होती है।
अनान्नास के पत्तों का काढ़ा एक चौथाई ग्राम पीने से
भी मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है। सुरेश चौहान

15. बथुआ: 2 चम्मच बथुआ के बीज 1 गिलास पानी में
उबालें। आधा पानी बच जाने पर छानकर पीने से रुका हुआ
मासिकधर्म खुलकर साफ आता है।

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)
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1. आंवला: आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।
2. झरबेरी: झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
3. नागकेशर: नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
4. रोहितक: रोहितक की जड़ को पीसकर पानी के साथ लेने से श्वेतप्रदर के रोग में लाभ मिलता है।
5. केला: 2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।
6. गुलाब: गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर इसे बारीक पीसकर बने पाउडर को लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह और शाम दूध के साथ लेने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा मिलता है।
7. मुलहठी: मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।
8. शिरीष: शिरीष की छाल का चूर्ण 1 ग्राम को देशी घी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
9. बला: बला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ प्राप्त होता है।
10. बड़ी इलायची: बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर समान मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम को लेने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
11. ककड़ी: ककड़ी के बीज, कमल, ककड़ी, जीरा और चीनी (शक्कर) को बराबर मात्रा में लेकर 2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
12. जीरा: जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
13. चना: सेंके हुए चने पीसकर उसमें खांड मिलाकर खाएं। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पीयें, इससे श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) गिरना बंद हो जाता है।
14. जामुन: छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक रोज खाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
15. धाय :स्त्रियों के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में धातकी (धाय) के फूलों का चूर्ण 2 चम्मच लगभग 3 ग्राम शहद के साथ सुबह खाली पेट व सायंकाल भोजन से एक घंटा पहले सेवन करने से लाभ होता है।
*धातकी के फूलों का चूर्ण और मिश्री 1-1 चम्मच की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से दूध या जल के साथ कुछ समय तक सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
16. दूधी: 2 ग्राम दूधी की जड़ को पीसकर और छानकर दिन में 3 बार पिलाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) और रक्तप्रदर नष्ट होता है।
17. फिटकरी: चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। 18. ककड़ी: ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।
19. गाजर: गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
20. मेथी:मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है।
रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है।
*मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
*गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।

21. ईसबगोल: ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से श्वेत प्रदर में बहुत लाभ होता है।
22. सफेद पेठा: औरतों के श्वेत प्रदर (जरायु से पीले, मटमैले या सफेद पानी जैसा तरल या गाढ़े स्राव के बहने को) रोग (ल्यूकोरिया), अधिक मासिक का स्राव (बहना), खून की कमी आदि रोगों में पेठे का साग घी में भूनकर खाने या उसके रस में चीनी को मिलाकर सुबह-शाम आधा-आधा गिलास पीने से आराम मिलता है।
23. गूलर:रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से लाभ श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में मिलता है
*मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने और गर्भाशय में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है।
*गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है।
*1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

24. गुलाब: श्वेतप्रदर, पेशाब में जलन हो तो गुलाब के ताजे फूल और 50 ग्राम मिश्री दोनों को पीसकर, आधा गिलास पानी में मिलाकर रोजाना 10 दिनों तक पीने से लाभ मिलता है।
25. कुलथी: श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में 100 ग्राम कुलथी 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर बचे पानी छानकर पीने से लाभ मिलेगा।
26. नीम:
नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है।
*कफज रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।
27. लोध: लोध और वट के पेड़ की छाल मिलाकर काढ़ा बना लें। 2 चम्मच की मात्रा में यह काढ़ा रोजाना सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ होता है।
28. बबूल:बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढे़ में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी।
*बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।
29. बकायन: बकायन के बीज और श्वेतचन्दन समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ मिलता है।
30. अर्जुन की छाल: महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर और पेशाब की जलन को ठीक करने के लिए अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का सेवन करना चाहिए।

सरसों सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases

 सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases
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सरसों की प्रजाति का राई एक महत्वपूर्ण मसाले के तौर पर हर भारतीय रसोई में उपयोग में लाया जाता है। सारे भारतवर्ष में राई की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। राई का वानस्पतिक नाम ब्रासिका नाईग्रा है और इसे काली सरसों के नाम से भी जाना जाता है। आदिवासी अंचलों में इसे मसाले के तौर पर अपनाने के अलावा अनेक हर्बल नुस्खों के रूप में भी आजमाया जाता है। चलिए आज जानकारी लेंगे आदिवासियों के उन नुस्खों के बारे में जिनमे राई को बतौर औषधि इस्तेमाल किया जाता है।

राई के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

राई के बीज में मायरोसीन, सिनिग्रिन जैसे रसायन पाए जाते है, ये रसायन त्वचा रोगों के लिए हितकर हैं। राई को रात भर पानी में डुबोकर रखा जाए और सुबह इस पानी को त्वचा पर लगाया जाए तो त्वचा रोगों में आराम मिल जाता है।

आदिवासियों के अनुसार राई के बीजों का लेप ललाट पर लगाया जाए तो सरदर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता है। कुछ इलाकों में आदिवासी इस लेप में कर्पूर भी मिला देते हैं ताकि जल्दी असर हो।

चुटकी भर राई के चूर्ण को पानी के साथ घोलकर बच्चों को देने से वे रात में बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते है।

यदि किसी व्यक्ति को लगातार दस्त हो रहें हो तो हथेली में थोड़ी सी राई लेकर हल्के गुनगुने पानी डाल दिया जाए और रोगी को पिला दिया जाए तो काफी आराम मिलता है। माना जाता है कि राई दस्त रोकने के लिए अतिसक्षम होती है।

राई के बीजों का लेप और कपूर का मिश्रण जोड़ों पर मालिश करने से आमवात और जोड़ के दर्द में फायदा होता है। पातालकोट के कई हिस्सों में आदिवासी इस मिश्रण में थोड़ा से केरोसिन तेल डालकर मालिश करते हैं। कहा जाता है कि यह फार्मुला दर्द को खींच निकालता है।

राई के घोल को सिर पर लगाने से सर के फोड़े, फुन्सी और बालों का झड़ना भी बंद हो जाता है। डाँगी हर्बल जानकारों के अनुसार ऐसा करने से सिर से डेंड्रफ भी छूमंतर हो जाते हैं।

राई को बारीक पीसकर यदि दर्द वाले हिस्से पर लेपित किया जाए तो आधे सिर का दर्द माईग्रेन में तुरंत आराम मिलता है।

धुम्रपान से काले हुए होंठों को लाल या सामान्य करने के लिए अकरकरा और राई की समान मात्रा पीसकर दिन में तीन चार बार लगाते रहने से कुछ ही दिनों में होठों का रंग सामान्य हो जाता है।

राई के तेल को गर्म कर दो तीन बूँदे कान डाला जाए तो कान में दर्द होना बंद हो जाता है। जिन्हें कम सुनाई देता हो या बहरापन की शिकायत हो, उन्हें भी इस फार्मुले को उपयोग में लाना चाहिए, फायदा होता है।


अरहर / Cajanus cajan / pigeon pea


अरहर/ Cajanus cajan / pigeon pea

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सामान्य परिचय : अरहर दो प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती है। दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। यह गर्म और रूक्ष होती है जिन्हें इसकी प्रकृति के कारण हानि हो वे लोग इसकी दाल को घी में छोंककर खायें, फिर किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उसका सब्जी भी बनायी जाती है। बैंगन की सब्जी में अरहर की हरी फलियों के दाने मिलाने से अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी बनती है। अरहर की दाल में इमली अथवा आम की खटाई तथा गर्म मसाले डालने से यह अधिक रुचिकारक बनती है। अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती। इसकी दाल त्रिदोषनाशक (वात, कफ और पित्त) होने से सभी के लिए अनुकूल रहती है। अरहर के पौधे की सुकोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाए जाते हैं। इससे वे अधिक तरोताजा बनते हैं और अधिक दूध देते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत आढकी, तुवरी, शणपुष्पिका
हिंदी अरहर
बंगाली अड़हर
मराठी तुरी
तेलगू कादुल
अंग्रेजी पीजन पी
लैटिन कैजेनस इंडिकस

रंग : इसका रंग पीला और लाल होता है।

स्वाद : इसकी दाल खाने में फीकी तथा स्वादिष्ट होती है।

स्वाभाव : अरहर की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।

गुण :यह कषैली, रूक्ष, मधुर, शीतल, पचने में हल्की, ट्टटी को न रोकने वाली, वायुउत्पादक, शरीर के अंगों को सुंदर बनाने वाली एवं कफ और रक्त सम्बंधी विकारों को दूर करने वाली है। लाल अरहर की दाल, हल्की, तीखी तथा गर्म होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली (भूख को बढ़ाने वाली) और कफ, विष, खून की खराबी, खुजली, कोढ़ (सफेद दाग) तथा जठर (भोजन पचाने का भाग) के अंदर मौजूद हानिकारक कीड़ों को दूर करने वाली है। अरहर की दाल पाचक है तथा बवासीर, बुखार और गुल्म रोगों में भी यह दाल लाभकारी है।

विभिन्न रोगों में अरहर से उपचार: :


1 खुजली : -अरहर के पत्तों को जलाकर उसकी राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।

2 आधासीसी (आधे सिर का दर्द या माइग्रेन) : -अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस इकठ्ठा करके नाक में लेने से आधासीसी में लाभ होता है।

3 भांग का नशा :-अरहर की दाल को पीसकर, पानी मिलाकर पीने से भांग का नशा उतर जाता है अथवा अरहर की दाल को पानी में उबालकर या पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाना चाहिए।

4 सांप के विष पर : -अरहर की जड़ को चबाकर खाने से सांप के विष में लाभ होता है।

5 पसीना :-एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ को मिलाकर सरसों के तेल में डालकर छोंककर पीस लें। इस पाउडर से शरीर पर मालिश करने से पसीना आना बंद हो जाता है। सन्निपात की हालत में पसीना आने पर भी यह प्रयोग कर सकते हैं।

6 मुंह में छाले : -अरहर की दाल छिलको सहित पानी में भिगोकर उस पानी से कुल्ले करने पर छाले ठीक हो जाते हैं। यह गर्मी के प्रभाव दूर करती है।

7 अभिन्यास ज्वर : -अधिक पसीना आने की स्थिति में भुने हुए अरहर के बीजों का बारीक चूर्ण या शंख भस्म (राख) को शरीर पर लगायें। यदि रोगी पर इस औषधि का कोई असर न दिख रहा हो तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

8 अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना : -अरहर की दाल को पानी में भिगो दें। उसी पानी में उसे बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करें। इसके बाद उसे अंडकोष पर लगायें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक ऐसा ही करने से अंडकोष में लाभ होता है।

9 दांतों की बीमारी : -अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दांतों की पीड़ा खत्म होती है।

10 बालों के रोग (अपोपिका) : -सिर के धब्बे को खुरदरे कपड़ों से रगड़कर साफ करने के बाद अरहर की दाल पीसकर रोजाना 3 बार इसका प्रयोग करें। इसके दूसरे दिन सरसों का तेल लगाकर धूप में बैठ जाएं और 4 घण्टे बाद फिर से इसे लगायें, इसी तरह कुछ दिनों तक इसका प्रयोग करने से बाल फिर से उग आते हैं।

11 जीभ की सूजन और जलन : -जीभ में छाले पड़ना तथा जीभ के फटने पर अरहर के कोमल पत्तों को चबाएं।

12 बालों की रूसी : -अरहर की दाल छिलके सहित 1 गिलास पानी में रख दें और इसे पीसकर माथे पर लेप करें। इसके बाद सिर को धोकर कंघी करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से रूसी दूर हो जाएगी।

13 पेट की गैस बनना : -अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।

14 हिचकी : -अरहर के छिलके का धूम्रपान करने से हिचकी नहीं आती है।

15 कान की सूजन और जलन : -कान की सूजन होने पर अरहर की दाल को पीसकर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है।

16 घाव : -अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से घाव भर जाते हैं।

17 पित्त की पथरी : -अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद लगभग आधा ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।

18 स्त्री के स्तनों में दूध की अधिकता से उत्पन्न विकार : -*अरहर (रहरी, शहर) के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके स्तनों पर लगाने से दूध रुक जाता है।
*दाल को पीसकर लेप की भांति स्तनों पर लगाने से स्तनों में आई सूजन नष्ट हो जाती है।"

19 मुर्च्छा (बेहोशी) होने पर : -आधा घंटे तक अरहर की दाल को एक कप पानी में भीगने दें। इसके बाद इस पानी को रोगी की नाक में एक-एक बूंद करके डालें। कुछ देर बाद ही जब व्यक्ति होश में आ जाये तो बचे हुए पानी को रोगी को पिला दें।

20 सिर का दर्द : -अरहर के कच्चे पत्तों और हरी दूब का रस निकालकर उसे छानकर सूंघने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।

21 शरीर में सूजन : -शरीर के सूजन वाले अंग पर 4 चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है।

22 नाड़ी की जलन :-नाड़ी की जलन में अरहर (रहरी) की दाल को जल के साथ पीसकर लेप बना लें। इसके लेप को नाड़ी की जलन पर लगाने से रोग जल्द ठीक हो जाते हैं।

23 गले की सूजन और छाले : -गले के छाले दूर करने के लिए अरहर के पत्तों तथा धनिये के पत्तों को उबालकर उस पानी से कुल्ला करें।

24 गले के रोग : -रात को अरहर की दाल को पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह इस पानी को गर्म करके कम से कम दो से तीन बार कुछ देर तक कुल्ला करने से कंठ (गले) की सूजन दूर हो जाती है।

Thursday 4 July 2013

कटहल के स्वास्थ्य लाभ//Health Benefits of Jackfruit


                          कटहल का फल है बड़ा उपयोगी 


भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा होता है। कटहल की सब्जी, पकौडे़ या अचार आदि बनाए जाते है। जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। कटहल के अंदर कई पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं जैसे, विटामिन ए, सी, थाइमिन, पोटैशियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक आदि। इस फल में खूब सारा फाइबर पाया जाता है साथ ही इसमें बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती है।

पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है, यह हार्ट के रोगियों के लिये भी अच्छा माना जाता है।
कटहल के स्वास्थ्य लाभ---

- कटहल में पोटैशियम पाया जाता है जो कि हार्ट की समस्या को दूर करता है क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को लो कर देता है।
- इस रेशेदार फल में काफी आयरन पाया जाता है जो कि एनीमिया को दूर करता है और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है।
- इसकी जड़ अस्थमा के रोगियो के लिये अच्छी मानी जाती है। इसकी जड़ को पानी के साथ उबाल कर बचा हुआ पानी छान कर पिये तो अस्थमा कंट्रोल हो जाएगा।
- इसमें मौजूद सूक्ष्म खनिज और कॉपर थायराइड चयापचय के लिये प्रभावशाली होता है। खासतौर पर यह हार्मोन के उत्पादन और अवशोषण के लिये अच्छा माना जाता है।
- हड्डियों के लिये भी यह फल बहुत अच्छा होता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम हड्डी में मजबूती लाता है तथा भविष्य में ऑस्टियोपुरोसिस की समस्या से निजात दिलाता है।
- इसमें विटामिन सी और ए पाया जाता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और बैक्टीरियल और वाइरल इंफेक्शन से बचाता है।
- इसमें मौजूद शर्करा जैसे, फ्रक्टोज़ और सूकरोज़ तुरंत ऊर्जा देते हैं। इस शर्करा में बिल्कुल भी जमी हुई चर्बी और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता।
- यह फल अल्सर और पाचन सम्बंधी समस्या को दूर करते हैं। इसमें फाइबर होता है जो कि कब्ज की समस्या को दूर करते हैं।
- इसका स्वास्थ्य लाभ आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन ए पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है।
सावधानी ---
पका कटहल का फल कफवर्धक है, अत: सर्दी-जुकाम, खांसी, अर्जीण आदि रोगों से प्रभावित व्यक्तियों एवं गर्भवती महिलाओं को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
कटहल खाने के बाद पान खान से पेट फूल जाता है और अफरा होने का डर रहता है अत: भूल कर भी कटहल के बाद पान न खाएं।दुबले-पतले पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को पका कटहल दोपहर में खाकर कुछ देर आराम करना चाहिए।