Friday 19 July 2013

लहसुन सिर्फ मसाला नहीं है, आयुर्वेद में बताया है ये इन बड़ी बीमारियों में रामबाण दवा है/Garlic is not just the spice, is described in Ayurveda is the panacea for these major diseases

लहसुन सिर्फ मसाला नहीं है, आयुर्वेद में बताया है ये इन बड़ी बीमारियों में रामबाण दवा है/Garlic is not just the spice, is described in Ayurveda is the panacea for these major diseases

लहसुन सिर्फ मसाले के रूप में खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाती बल्कि अब तों वैज्ञानिक भी मानने लगे है कि लहसुन कई बीमारियों में लाभदायक औषधि की तरह काम करता है।जर्मनी की हेल्थ एडवाइस एसोसिएशन की माने तो यदि लहसुन को बेहद कम मात्रा में खाया जाता है, इस...के लाभकारी त्तत्वों का फायदा नहीं मिलता। इसमे पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए,सी व सल्फाइड भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। लहसुन के ऐसे ही कुछ जबरदस्त औषधिय गुणों का वर्णन आयुर्वेद में भी मिलता है हम आपको बताने जा रहे हैं आयुर्वेद के खजाने से कुछ खास नुस्खे जो बीमारियों में रामबाण की तरह काम करते हैं।

लहसुन में पाए जाने वाले तत्व - लहसुन में प्रोटीन 6.3 प्रतिशत,वसा 0.1 प्रतिशत, कार्बोज 21 प्रतिशत, खनिज पदार्थ- 1 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा लोहा 1.3 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी एवं सल्फ्यूरिक एसिड विशेष मात्रा में पाई जाती है।

दांतों के दर्द में फायदेमंद
आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन लहसुन के सेवन से दांतों के दर्द में आराम मिलता है। लहसुन को लौंग के साथ पीसकर दांतों के दर्द वाले हिस्से पर लगाने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।

एंटीबायोटिक की तरह असरदार
लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है। चाय में अदरक के साथ लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से अस्थमा की परेशानी को कम किया जा सकता है।

कैंसर से रक्षा करता है
कैंसर को एक लाइलाज बीमारी माना जाता है। लेकिन शायद आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आयुर्वेद के अनुसार रोजाना थोड़ी मात्रा में लहसुन का सेवन करने से कैंसर होने की संभावना अस्सी प्रतिशत तक कम हो जाती है।कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढऩे से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

कफ में लहसुन लाभदायक
ठंड या बदलते मौसम में अक्सर किसी भी उम्र के लोगों को कफ और जुकाम जैसी परेशानी हो जाती हैं। ऐसे में अगर आप लहसुन का नियमित रूप से सेवन करते हैं तो आप ऐसी छोटी-छोटी समस्याओं से बड़ी ही आसानी से निजात पा सकते हैं।

कॉलेस्ट्रोल को कम करता है
कॉलेस्ट्रोल की समस्या से परेशान लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीडि़त लोगों के लिए लहसुन किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। रोजाना इसे खाने से आपका कॉलेस्ट्रोल लेवल 12 प्रतिशत तक कम हो सकता है।इसे खाने से दिल की बीमारियों को दूर रखा जा सकता है।

विटामिन सी की कमी होने पर
जिनके शरीर में रक्त की कमी है, उन्हें लहसुन का सेवन अवश्य करना चाहिए, इसमें पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व होता है जो कि रक्त निर्माण में सहायक होता है। लहसुन में विटामिन सी होने से यह स्कर्वी रोग से भी बचाता है।

मुहांसों का पक्का इलाज
मुंहासों से परेशान लोगों के लिए ये काफी कारगर साबित होता है। इसे खाने से खून साफ होता है।गला खराब होने पर गुनगुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारा करने से राहत मिलती है। मौसम में बदलाव आने के साथ इसके सेवन की मात्रा में भी बदलाव करें सर्दी के मौसम में लहसुन का अधिक मात्रा में सेवन किया जा सकता है। लेकिन गर्मी के मौसम में इसका अधिक मात्रा में सेवन ना करें। लहसुन को आप कच्चा भी खा सकते हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद
गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए।

Saturday 6 July 2013

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects
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माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना

1. किशमिश: पुरानी किशमिश को 3 ग्राम
की मात्रा में लेकर इसे लगभग 200 मिलीलीटर पानी में
रात को भिगोकर रख दें। सुबह इसे उबालकर रख लें। जब
यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर सेवन
करने से मासिक-धर्म के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

2. तिल: काले तिल 5 ग्राम को गुड़ में मिलाकर
माहवारी (मासिक) शुरू होने से 4 दिन पहले सेवन
करना चाहिए। जब मासिक धर्म शुरू हो जाए तो इसे बंद
कर देना चाहिए। इससे माहवारी सम्बंधी सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं।
लगभग 8 चम्मच तिल, एक गिलास पानी में गुड़ या 10 कालीमिर्च को (इच्छानुसार) पीसकर गर्म कर लें।
आधा पानी बच जाने पर 2 बार रोजाना पीयें, यह मासिक-
धर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिकस्राव तक सेवन
करें। ऐसा करने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
14 से 28 मिलीलीटर बीजों का काढ़ा एक ग्राम मिर्च
के चूर्ण के साथ दिन में तीन बार देने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
तिल, जौ और शर्करा का चूर्ण शहद में मिलाकर
खिलाने से प्रसूता स्त्रियों की योनि से खून
का बहना बंद हो जाता है।

3. ज्वार: ज्वार के भुट्टे को जलाकर इसकी राख को छान
लें। इस राख को 3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह
पहले देना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए
तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

4. चौलाई: चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक
पीस लें। इसे लगभग 5 ग्राम मात्रा में सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिनों पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

5. असगंध: असगंध और खाण्ड को बराबर मात्रा में लेकर
बारीक पीस लें, फिर इसे 10 ग्राम लेकर पानी से
खाली पेट मासिक धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिन पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

6. रेवन्दचीनी: रेवन्दचीनी 3 ग्राम की मात्रा में सुबह के
समय खाली पेट माहवारी (मासिक धर्म) शुरू होने से
लगभग 7 दिन पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू
हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे
मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

7. कपूरचूरा: आधा ग्राम कपूरचूरा में मैदा मिलाकर 4
गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक
गोली का सेवन माहवारी शुरू होने से लगभग 4 दिन पहले
स्त्री को सेवन करना चाहिए। मासिक-धर्म शुरू होने के
बाद इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

8. राई: मासिक-धर्म में दर्द होता हो या स्राव कम
होता हो तो गुनगुने पानी में राई के चूर्ण को मिलाकर,
स्त्री को कमर तक डूबे पानी में बैठाने से लाभ होता है।

9. मूली: मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ 3-3
ग्राम सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) का अवरोध नष्ट
होता है। सुरेश चौहान

10. अडूसा (वासा): अड़ूसा के पत्ते ऋतुस्त्राव
(मासिकस्राव) को नियंत्रित करते हैं। रजोरोध
(मासिकस्राव अवरोध) में वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व
गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को 500
मिलीलीटर पानी में पका लें। चतुर्थाश शेष रहने पर यह
काढ़ा कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

11. कलौंजी: 2-3 महीने तक भी मासिक-धर्म के न होने
पर और पेट में भी दर्द रहने पर एक कप गर्म पानी में
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 2 चम्मच शहद
मिलाकर सुबह-शाम को खाना खाने के बाद सोते समय 30
दिनों तक पियें। नोट: इस प्रयोग के दौरान आलू और
बैगन नहीं खाना चाहिए। सुरेश चौहान

12. विदारीकन्द: विदारीकन्द का चूर्ण 1 चम्मच और
मिश्री 1 चम्मच दोनों को पीसकर 1 चम्मच घी के साथ
मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से मासिक-धर्म
में अधिक खून आना बंद होता है।
विदारीकन्द के 1 चम्मच चूर्ण को घी और चीनी के साथ
मिलाकर चटाने से मासिक-धर्म में अधिक खून आना बंद हो जाता है।

13. उलटकंबल: उलटकंबल की जड़ की छाल का गर्म
चिकना रस 2 ग्राम की मात्रा में कुछ समय तक रोज देने
से हर तरह के कष्ट से होने वाले मासिक-धर्म में लाभ
मिलता है।सुरेश चौहान
उलटकंबल की जड़ की छाल को 6 ग्राम लेकर 1 ग्राम
कालीमिर्च के साथ पीसकर रख लें। इसे मासिक धर्म से 7 दिनों पहले से और जब तक मासिक-धर्म होता रहता है
तब तक पानी के साथ लेने से मासिक-धर्म नियमित
होता है। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भाशय
को शक्ति प्राप्त होती है।
अनियमित मासिक-धर्म के साथ ही, गर्भाशय, जांघ
और कमर में दर्द हो तो उलटकंबल की जड़ का रस 4 ग्राम निकालकर चीनी के साथ सेवन करने से 2 दिन में ही लाभ
मिलता है।
उलटकंबल की 50 ग्राम सूखी छाल को जौ कूट
यानी पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर
काढ़ा तैयार करें। यह काढ़ा उचित मात्रा में दिन में 3 बार
लेने से कुछ ही दिनों में मासिक-धर्म नियमित समय पर होने लग जाता है। इसका प्रयोग मासिक धर्म शुरू होने
से 7 दिन पहले से मासिक-धर्म आरम्भ होने तक दें।
उलटकंबल की जड़ की छाल का चूर्ण 4 ग्राम और
कालीमिर्च के 7 दाने सुबह-शाम पानी के साथ मासिक-
धर्म के समय 7 दिन तक सेवन करें। 2 से 4 महीनों तक
यह प्रयोग करने से गर्भाशय के सभी दोष मिट जाते हैं। यह प्रदर और बन्ध्यत्व की सर्वश्रेष्ठ औषधि है। सुरेश चौहान

14. अनन्नास: अनन्नास के कच्चे फलों के 10
मिलीलीटर रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1
ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक-धर्म की रुकावट
दूर होती है।
अनान्नास के पत्तों का काढ़ा एक चौथाई ग्राम पीने से
भी मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है। सुरेश चौहान

15. बथुआ: 2 चम्मच बथुआ के बीज 1 गिलास पानी में
उबालें। आधा पानी बच जाने पर छानकर पीने से रुका हुआ
मासिकधर्म खुलकर साफ आता है।

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)
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1. आंवला: आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।
2. झरबेरी: झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
3. नागकेशर: नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
4. रोहितक: रोहितक की जड़ को पीसकर पानी के साथ लेने से श्वेतप्रदर के रोग में लाभ मिलता है।
5. केला: 2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।
6. गुलाब: गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर इसे बारीक पीसकर बने पाउडर को लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह और शाम दूध के साथ लेने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा मिलता है।
7. मुलहठी: मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।
8. शिरीष: शिरीष की छाल का चूर्ण 1 ग्राम को देशी घी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
9. बला: बला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ प्राप्त होता है।
10. बड़ी इलायची: बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर समान मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम को लेने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
11. ककड़ी: ककड़ी के बीज, कमल, ककड़ी, जीरा और चीनी (शक्कर) को बराबर मात्रा में लेकर 2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
12. जीरा: जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
13. चना: सेंके हुए चने पीसकर उसमें खांड मिलाकर खाएं। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पीयें, इससे श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) गिरना बंद हो जाता है।
14. जामुन: छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक रोज खाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
15. धाय :स्त्रियों के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में धातकी (धाय) के फूलों का चूर्ण 2 चम्मच लगभग 3 ग्राम शहद के साथ सुबह खाली पेट व सायंकाल भोजन से एक घंटा पहले सेवन करने से लाभ होता है।
*धातकी के फूलों का चूर्ण और मिश्री 1-1 चम्मच की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से दूध या जल के साथ कुछ समय तक सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
16. दूधी: 2 ग्राम दूधी की जड़ को पीसकर और छानकर दिन में 3 बार पिलाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) और रक्तप्रदर नष्ट होता है।
17. फिटकरी: चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। 18. ककड़ी: ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।
19. गाजर: गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
20. मेथी:मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है।
रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है।
*मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
*गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।

21. ईसबगोल: ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से श्वेत प्रदर में बहुत लाभ होता है।
22. सफेद पेठा: औरतों के श्वेत प्रदर (जरायु से पीले, मटमैले या सफेद पानी जैसा तरल या गाढ़े स्राव के बहने को) रोग (ल्यूकोरिया), अधिक मासिक का स्राव (बहना), खून की कमी आदि रोगों में पेठे का साग घी में भूनकर खाने या उसके रस में चीनी को मिलाकर सुबह-शाम आधा-आधा गिलास पीने से आराम मिलता है।
23. गूलर:रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से लाभ श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में मिलता है
*मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने और गर्भाशय में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है।
*गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है।
*1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

24. गुलाब: श्वेतप्रदर, पेशाब में जलन हो तो गुलाब के ताजे फूल और 50 ग्राम मिश्री दोनों को पीसकर, आधा गिलास पानी में मिलाकर रोजाना 10 दिनों तक पीने से लाभ मिलता है।
25. कुलथी: श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में 100 ग्राम कुलथी 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर बचे पानी छानकर पीने से लाभ मिलेगा।
26. नीम:
नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है।
*कफज रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।
27. लोध: लोध और वट के पेड़ की छाल मिलाकर काढ़ा बना लें। 2 चम्मच की मात्रा में यह काढ़ा रोजाना सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ होता है।
28. बबूल:बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढे़ में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी।
*बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।
29. बकायन: बकायन के बीज और श्वेतचन्दन समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ मिलता है।
30. अर्जुन की छाल: महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर और पेशाब की जलन को ठीक करने के लिए अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का सेवन करना चाहिए।

सरसों सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases

 सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases
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सरसों की प्रजाति का राई एक महत्वपूर्ण मसाले के तौर पर हर भारतीय रसोई में उपयोग में लाया जाता है। सारे भारतवर्ष में राई की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। राई का वानस्पतिक नाम ब्रासिका नाईग्रा है और इसे काली सरसों के नाम से भी जाना जाता है। आदिवासी अंचलों में इसे मसाले के तौर पर अपनाने के अलावा अनेक हर्बल नुस्खों के रूप में भी आजमाया जाता है। चलिए आज जानकारी लेंगे आदिवासियों के उन नुस्खों के बारे में जिनमे राई को बतौर औषधि इस्तेमाल किया जाता है।

राई के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

राई के बीज में मायरोसीन, सिनिग्रिन जैसे रसायन पाए जाते है, ये रसायन त्वचा रोगों के लिए हितकर हैं। राई को रात भर पानी में डुबोकर रखा जाए और सुबह इस पानी को त्वचा पर लगाया जाए तो त्वचा रोगों में आराम मिल जाता है।

आदिवासियों के अनुसार राई के बीजों का लेप ललाट पर लगाया जाए तो सरदर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता है। कुछ इलाकों में आदिवासी इस लेप में कर्पूर भी मिला देते हैं ताकि जल्दी असर हो।

चुटकी भर राई के चूर्ण को पानी के साथ घोलकर बच्चों को देने से वे रात में बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते है।

यदि किसी व्यक्ति को लगातार दस्त हो रहें हो तो हथेली में थोड़ी सी राई लेकर हल्के गुनगुने पानी डाल दिया जाए और रोगी को पिला दिया जाए तो काफी आराम मिलता है। माना जाता है कि राई दस्त रोकने के लिए अतिसक्षम होती है।

राई के बीजों का लेप और कपूर का मिश्रण जोड़ों पर मालिश करने से आमवात और जोड़ के दर्द में फायदा होता है। पातालकोट के कई हिस्सों में आदिवासी इस मिश्रण में थोड़ा से केरोसिन तेल डालकर मालिश करते हैं। कहा जाता है कि यह फार्मुला दर्द को खींच निकालता है।

राई के घोल को सिर पर लगाने से सर के फोड़े, फुन्सी और बालों का झड़ना भी बंद हो जाता है। डाँगी हर्बल जानकारों के अनुसार ऐसा करने से सिर से डेंड्रफ भी छूमंतर हो जाते हैं।

राई को बारीक पीसकर यदि दर्द वाले हिस्से पर लेपित किया जाए तो आधे सिर का दर्द माईग्रेन में तुरंत आराम मिलता है।

धुम्रपान से काले हुए होंठों को लाल या सामान्य करने के लिए अकरकरा और राई की समान मात्रा पीसकर दिन में तीन चार बार लगाते रहने से कुछ ही दिनों में होठों का रंग सामान्य हो जाता है।

राई के तेल को गर्म कर दो तीन बूँदे कान डाला जाए तो कान में दर्द होना बंद हो जाता है। जिन्हें कम सुनाई देता हो या बहरापन की शिकायत हो, उन्हें भी इस फार्मुले को उपयोग में लाना चाहिए, फायदा होता है।


अरहर / Cajanus cajan / pigeon pea


अरहर/ Cajanus cajan / pigeon pea

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सामान्य परिचय : अरहर दो प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती है। दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। यह गर्म और रूक्ष होती है जिन्हें इसकी प्रकृति के कारण हानि हो वे लोग इसकी दाल को घी में छोंककर खायें, फिर किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उसका सब्जी भी बनायी जाती है। बैंगन की सब्जी में अरहर की हरी फलियों के दाने मिलाने से अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी बनती है। अरहर की दाल में इमली अथवा आम की खटाई तथा गर्म मसाले डालने से यह अधिक रुचिकारक बनती है। अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती। इसकी दाल त्रिदोषनाशक (वात, कफ और पित्त) होने से सभी के लिए अनुकूल रहती है। अरहर के पौधे की सुकोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाए जाते हैं। इससे वे अधिक तरोताजा बनते हैं और अधिक दूध देते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत आढकी, तुवरी, शणपुष्पिका
हिंदी अरहर
बंगाली अड़हर
मराठी तुरी
तेलगू कादुल
अंग्रेजी पीजन पी
लैटिन कैजेनस इंडिकस

रंग : इसका रंग पीला और लाल होता है।

स्वाद : इसकी दाल खाने में फीकी तथा स्वादिष्ट होती है।

स्वाभाव : अरहर की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।

गुण :यह कषैली, रूक्ष, मधुर, शीतल, पचने में हल्की, ट्टटी को न रोकने वाली, वायुउत्पादक, शरीर के अंगों को सुंदर बनाने वाली एवं कफ और रक्त सम्बंधी विकारों को दूर करने वाली है। लाल अरहर की दाल, हल्की, तीखी तथा गर्म होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली (भूख को बढ़ाने वाली) और कफ, विष, खून की खराबी, खुजली, कोढ़ (सफेद दाग) तथा जठर (भोजन पचाने का भाग) के अंदर मौजूद हानिकारक कीड़ों को दूर करने वाली है। अरहर की दाल पाचक है तथा बवासीर, बुखार और गुल्म रोगों में भी यह दाल लाभकारी है।

विभिन्न रोगों में अरहर से उपचार: :


1 खुजली : -अरहर के पत्तों को जलाकर उसकी राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।

2 आधासीसी (आधे सिर का दर्द या माइग्रेन) : -अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस इकठ्ठा करके नाक में लेने से आधासीसी में लाभ होता है।

3 भांग का नशा :-अरहर की दाल को पीसकर, पानी मिलाकर पीने से भांग का नशा उतर जाता है अथवा अरहर की दाल को पानी में उबालकर या पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाना चाहिए।

4 सांप के विष पर : -अरहर की जड़ को चबाकर खाने से सांप के विष में लाभ होता है।

5 पसीना :-एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ को मिलाकर सरसों के तेल में डालकर छोंककर पीस लें। इस पाउडर से शरीर पर मालिश करने से पसीना आना बंद हो जाता है। सन्निपात की हालत में पसीना आने पर भी यह प्रयोग कर सकते हैं।

6 मुंह में छाले : -अरहर की दाल छिलको सहित पानी में भिगोकर उस पानी से कुल्ले करने पर छाले ठीक हो जाते हैं। यह गर्मी के प्रभाव दूर करती है।

7 अभिन्यास ज्वर : -अधिक पसीना आने की स्थिति में भुने हुए अरहर के बीजों का बारीक चूर्ण या शंख भस्म (राख) को शरीर पर लगायें। यदि रोगी पर इस औषधि का कोई असर न दिख रहा हो तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

8 अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना : -अरहर की दाल को पानी में भिगो दें। उसी पानी में उसे बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करें। इसके बाद उसे अंडकोष पर लगायें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक ऐसा ही करने से अंडकोष में लाभ होता है।

9 दांतों की बीमारी : -अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दांतों की पीड़ा खत्म होती है।

10 बालों के रोग (अपोपिका) : -सिर के धब्बे को खुरदरे कपड़ों से रगड़कर साफ करने के बाद अरहर की दाल पीसकर रोजाना 3 बार इसका प्रयोग करें। इसके दूसरे दिन सरसों का तेल लगाकर धूप में बैठ जाएं और 4 घण्टे बाद फिर से इसे लगायें, इसी तरह कुछ दिनों तक इसका प्रयोग करने से बाल फिर से उग आते हैं।

11 जीभ की सूजन और जलन : -जीभ में छाले पड़ना तथा जीभ के फटने पर अरहर के कोमल पत्तों को चबाएं।

12 बालों की रूसी : -अरहर की दाल छिलके सहित 1 गिलास पानी में रख दें और इसे पीसकर माथे पर लेप करें। इसके बाद सिर को धोकर कंघी करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से रूसी दूर हो जाएगी।

13 पेट की गैस बनना : -अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।

14 हिचकी : -अरहर के छिलके का धूम्रपान करने से हिचकी नहीं आती है।

15 कान की सूजन और जलन : -कान की सूजन होने पर अरहर की दाल को पीसकर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है।

16 घाव : -अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से घाव भर जाते हैं।

17 पित्त की पथरी : -अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद लगभग आधा ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।

18 स्त्री के स्तनों में दूध की अधिकता से उत्पन्न विकार : -*अरहर (रहरी, शहर) के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके स्तनों पर लगाने से दूध रुक जाता है।
*दाल को पीसकर लेप की भांति स्तनों पर लगाने से स्तनों में आई सूजन नष्ट हो जाती है।"

19 मुर्च्छा (बेहोशी) होने पर : -आधा घंटे तक अरहर की दाल को एक कप पानी में भीगने दें। इसके बाद इस पानी को रोगी की नाक में एक-एक बूंद करके डालें। कुछ देर बाद ही जब व्यक्ति होश में आ जाये तो बचे हुए पानी को रोगी को पिला दें।

20 सिर का दर्द : -अरहर के कच्चे पत्तों और हरी दूब का रस निकालकर उसे छानकर सूंघने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।

21 शरीर में सूजन : -शरीर के सूजन वाले अंग पर 4 चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है।

22 नाड़ी की जलन :-नाड़ी की जलन में अरहर (रहरी) की दाल को जल के साथ पीसकर लेप बना लें। इसके लेप को नाड़ी की जलन पर लगाने से रोग जल्द ठीक हो जाते हैं।

23 गले की सूजन और छाले : -गले के छाले दूर करने के लिए अरहर के पत्तों तथा धनिये के पत्तों को उबालकर उस पानी से कुल्ला करें।

24 गले के रोग : -रात को अरहर की दाल को पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह इस पानी को गर्म करके कम से कम दो से तीन बार कुछ देर तक कुल्ला करने से कंठ (गले) की सूजन दूर हो जाती है।

Thursday 4 July 2013

कटहल के स्वास्थ्य लाभ//Health Benefits of Jackfruit


                          कटहल का फल है बड़ा उपयोगी 


भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा होता है। कटहल की सब्जी, पकौडे़ या अचार आदि बनाए जाते है। जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। कटहल के अंदर कई पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं जैसे, विटामिन ए, सी, थाइमिन, पोटैशियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक आदि। इस फल में खूब सारा फाइबर पाया जाता है साथ ही इसमें बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती है।

पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है, यह हार्ट के रोगियों के लिये भी अच्छा माना जाता है।
कटहल के स्वास्थ्य लाभ---

- कटहल में पोटैशियम पाया जाता है जो कि हार्ट की समस्या को दूर करता है क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को लो कर देता है।
- इस रेशेदार फल में काफी आयरन पाया जाता है जो कि एनीमिया को दूर करता है और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है।
- इसकी जड़ अस्थमा के रोगियो के लिये अच्छी मानी जाती है। इसकी जड़ को पानी के साथ उबाल कर बचा हुआ पानी छान कर पिये तो अस्थमा कंट्रोल हो जाएगा।
- इसमें मौजूद सूक्ष्म खनिज और कॉपर थायराइड चयापचय के लिये प्रभावशाली होता है। खासतौर पर यह हार्मोन के उत्पादन और अवशोषण के लिये अच्छा माना जाता है।
- हड्डियों के लिये भी यह फल बहुत अच्छा होता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम हड्डी में मजबूती लाता है तथा भविष्य में ऑस्टियोपुरोसिस की समस्या से निजात दिलाता है।
- इसमें विटामिन सी और ए पाया जाता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और बैक्टीरियल और वाइरल इंफेक्शन से बचाता है।
- इसमें मौजूद शर्करा जैसे, फ्रक्टोज़ और सूकरोज़ तुरंत ऊर्जा देते हैं। इस शर्करा में बिल्कुल भी जमी हुई चर्बी और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता।
- यह फल अल्सर और पाचन सम्बंधी समस्या को दूर करते हैं। इसमें फाइबर होता है जो कि कब्ज की समस्या को दूर करते हैं।
- इसका स्वास्थ्य लाभ आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन ए पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है।
सावधानी ---
पका कटहल का फल कफवर्धक है, अत: सर्दी-जुकाम, खांसी, अर्जीण आदि रोगों से प्रभावित व्यक्तियों एवं गर्भवती महिलाओं को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
कटहल खाने के बाद पान खान से पेट फूल जाता है और अफरा होने का डर रहता है अत: भूल कर भी कटहल के बाद पान न खाएं।दुबले-पतले पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को पका कटहल दोपहर में खाकर कुछ देर आराम करना चाहिए।

लक्ष्मण को आप कितना जानते हैं?

रामायण अनुसार राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे लक्ष्मण। उनकी माता का नाम सुमित्रा था। भगवान राम से लक्ष्मण बहुत प्रेम रखते थे। लक्ष्मण के लिए राम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन ही इनका मुख्य धर्म था। वे उनके साथ सदा छाया की तरह रहते थे। भगवान श्रीराम के प्रति किसी के भी अपमानसूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे। वास्तव में लक्ष्मण का वनवास राम के वनवास से भी अधिक महान है। 14 वर्ष पत्नी से दूर रहकर उन्होंने केवल राम की सेवा को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया।

शेषावतारभगवान राम को जहां विष्णु का अवतार माना गया है वहीं लक्ष्मण को शेषावतार कहा जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार शेषनाग के कई अवतारों का उल्लेख मिलता है जिनमें राम के भाई लक्ष्मण और कृष्ण के भाई बलराम मुख्य हैं। शेषनाग भगवान विष्णु की शैया है।

लक्ष्मण का जन्मदशरथ की तीन पत्नियां थी। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिए थे जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ। कौशल्या और कैकेयी द्वारा प्रसाद फल आधा-आधा सुमित्रा को देने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। कौशल्या से राम और कैकेयी से भरत का जन्म हुआ।

गुरुराम और लक्ष्मण सहित चारों भाइयों के दो गुरु थे- वशिष्ठ, विश्वामित्र। विश्वामित्र दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे। रावण के द्वारा वहां नियुक्त ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे- राक्षस इनके यज्ञ में बार-बार विघ्न उपस्थित कर देते थे। विश्वामित्र अपनी यज्ञ रक्षा के लिए श्रीराम-लक्ष्मण को महाराज दशरथ से मांगकर ले आए। दोनों भाइयों ने मिलकर राक्षसों का वध किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हुई। विश्वामित्र ने ही राम को अपनी विद्याएं प्रदान कीं और उनका मिथिला में सीता से विवाह संपन्न कराया।


माना जाता है कि लक्ष्मण की तीन पत्नियां थीं- उर्मिला, जितपद्मा और वनमाला। लेकिन रामायण में उर्मिला को ही मान्यता प्राप्त पत्नी माना गया, बाकी दो पत्नियां की उनके जीवन में कोई खास जगह नहीं थी।

उर्मिलालक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला था। लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई के लिए चौदह वर्षों तक पत्नी से अलग रहकर वैराग्य का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, उर्मिला जनकनंदिनी सीता की छोटी बहन थीं और सीता के विवाह के समय ही दशरथ और सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को ब्याही गई थीं। लक्ष्मण से इनके अंगद और चन्द्रकेतु नाम के दो पुत्र तथा सोमदा नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई। अंगद ने अंगदीया पुरी तथा चन्द्रकेतु ने चन्द्रकांता पुरी की स्थापना की थी।

जितपद्मालक्ष्मण की एक और पत्नी थी जिसका नाम था- जितपद्मा। लक्ष्मण ने मध्यप्रदेश में क्षेत्रांजलिपुर के राजा के विषय में सुना कि जो उसकी शक्ति को सह लेगा, उसी से वह अपनी कन्या का विवाह कर देगा। लक्ष्मण ने भाई की आज्ञा से राजा से प्रहार करने को कहा। प्रहार शक्ति सहकर उन्होंने शत्रुदमन राजा की कन्या जितपद्मा को प्राप्त किया। जितपद्मा को समझा-बुझाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण नगर से चले गए। 

वनमालामहीधर नामक राजा की कन्या का नाम वनमाला था। उसने बाल्यकाल से ही लक्ष्मण से विवाह करने का संकल्प ले रखा था। लक्ष्मण के राज्य से चले जाने के बाद महीधर ने उसका विवाह अन्यत्र करना चाहा, किंतु वह तैयार नहीं हुई। वह सखियों के साथ वनदेवता की पूजा करने के लिए गई। बरगद के वृक्ष के नीचे खड़े होकर उसने गले में फंदा डाल लिया। वह बोली कि लक्ष्मण को न पाकर मेरा जीवन व्यर्थ है, अत: वह आत्महत्या करने के लिए तत्पर हो गई। संयोग से उसी समय लक्ष्मण ने वहां पर पहुंचकर उसे बचाया तथा उसे ग्रहण किया।


लक्ष्मण रेखा : लक्ष्मण रेखा का किस्सा रामायण कथा का महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध प्रसंग है। यहीं से वनवासी राम और लक्ष्मण की जिंदगी बदल जाती है। रामायण अनुसार वनवास के समय सीता के आग्रह के कारण भगवान राम मायावी स्वर्ण मृग (हिरण) के आखेट हेतु उसके पीछे चले जाते हैं। थोड़ी देर में सहायता के लिए राम की पुकार सुनाई देती है, तो सीता माता व्याकुल हो जाती है। वे लक्ष्मण से उनके पास जाने को कहती है, लेकिन लक्ष्मण बहुत समझाते हैं कि यह किसी मायावी की आवाज है राम की नहीं, लेकिन सीता माता नहीं मानती हैं। तब विवश होकर जाते हुए लक्ष्मण ने कुटी के चारों ओर एक रेखा खींच दी और सीता माता से कहा कि आप किसी भी दशा में इस रेखा से बाहर न आना।

लेकिन तपस्वी के वेश में आए रावण के झांसे में आकर सीता ने लक्ष्मण की खींची हुई रेखा से बाहर पैर रखा ही था कि रावण उसका अपहरण कर ले गया। उस रेखा से भीतर रावण सीता का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था, तभी से आज तक 'लक्ष्मण रेखा' नामक उक्ति इस आशय से प्रयुक्त होती है कि किसी भी मामले में निश्चित हद को पार नहीं करना है चाहिए वरना नुकसान उठाना पड़ता है।


लक्ष्मण मूर्च्छाराम-रावण युद्ध के समय मेघनाद के तीर से लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। विभीषण ने सबको सांत्वना दी। सभी ने संजीवनी बूटी की खोज में हनुमानजी को भेजा और हनुमानजी संजीवनी का पहाड़ ही उठा लाए।

पुन: युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया। लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। सुषेण ने कहा- 'लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है अत: आप निश्चिंत रहिए।'


लखनऊमान्यता है कि लखनऊ शहर लक्ष्मण ने बसाया था। उत्तर भारत में लक्ष्मण को लखन भी कहते हैं। लखनऊ उस क्षेत्र में स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ प्राचीन कौशल राज्य का हिस्सा था। इसे पहले लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बदलकर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है।

लक्ष्मण झूलाउत्तरांचल के गढ़वाल क्षेत्र के ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि सबसे पहले इसे राम के भाई लक्ष्मण ने बनवाया था। लक्ष्मण ने यह झूला जूट से बनवाया था। बाद में 1939 में इसे आधुनिक रूप दिया गया। 450 फीट लंबे लक्ष्मण झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ का मंदिर है।

लक्ष्मण मंदिरलक्ष्मण के देशभर में बहुत सारे मंदिर है। एक मंदिर हेमकुंड झील के तट पर है जिसे लोकपाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर ठीक उसी जगह है, जहां भगवान राम के भाई लक्ष्मण ने रावण ने बेटे मेघनाद को मरने के बाद अपनी शक्ति को वापस पाने के लिए तप किया था।

भारत के सबसे प्राचीन इटों से बने मंदिरों में से एक छत्तीसगढ़ में लक्ष्मण मंदिर महानदी के किनारे खड़ा है। दक्षिण कौसल की राजधानी श्रीपुर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्व स्थलों में एक है। यहां कभी दस हजार भिक्षु भी रहा करते थे।

इस तरह लक्ष्मण के कई प्राचीन मंदिर है।

66 सालों में छह हजार प्रतिशत गिरा रुपया

66 सालों में छह हजार प्रतिशत गिरा रुपया

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नई दिल्ली। बढ़ते भुगतान असंतुलन, चालू खाता घाटे में वृद्धि और मुद्रास्फीति के दबाव के कारण पिछले 66 सालों में डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में 6000 प्रतिशत की गिरावट आई है।

आंकड़ों के अनुसार देश की स्वतंत्रता के समय विदेश व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था और रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले बराबर थी।

आंकडों में वर्ष 1947 में एक डॉलर की कीमत एक रुपए थी। इससे पहले डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति मजबूत थी तथा वर्ष 1925 में डॉलर के दाम मात्र 10 पैसे थे। वर्ष 19।7 में डॉलर साढ़े सात पैसे का था।

हाल में डॉलर की कीमत 61 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंचती नजर आई। डॉलर के मुकाबले रुपए के भाव ऐतिहासिक गिरावट में है।

बढ़ते व्यापार असंतुलन और चालू खाता घाटे में वृद्धि होने कारण रुपए के भाव 60 रुपए प्रति डॉलर के ऊपर बने हुए है और इसके भाव निकट भविष्य मे 65 रुपए प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंचने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है।

पिछले कारोबारी दिवस में अंतरबैकिंग मुद्रा बाजार में डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत 60.21 रुपए प्रति डॉलर रही। (वार्ता)

Tuesday 2 July 2013

आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है // Easy Tips slay the stomach is full of bugs

आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है  // Easy Tips slay the stomach is full of bugs
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सदियों पुराने पेट के कृमियों की समस्या और निवारण के ये आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है ---------


संक्रमित भोजन और पेय पदार्थों के सेवन, घरों के आसपास की गंदगी, अधकचे भोजन का सेवन जैसी अनेक वजहें हैं जो पेट में कृमि की शिकायत बनते हैं। पेट में कृमि होने से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर काफी प्रभाव पड़ता हैं। थकान, चिड़चिड़ापन और शारीरिक दुर्बलता के अलावा चेहरे और शरीर की त्वचा पर सफेद धब्बे आदि बनना इस रोग के लक्षणों के तौर पर माने जाते हैं। स्वस्थ रहन-सहन अनेक रोगों को हमसे दूर रखता है फिर भी यदि कृमियों से आप संक्रमित हो जाएं तो घबराने की बात नहीं। हिन्दुस्तानी आदिवासियों के हर्बल नुस्खे अपनाकर आप भी प्राकृतिक हर्बल उपायों के आधार पर इस समस्या से निजात पा सकते हैं। चलिए आज जानते हैं आदिवासियों के 10 जबरदस्त हर्बल उपाय जिनका उपयोग कर आप भी पेट के कृमियों की समस्या से निपट सकते हैं।

पेट के कृमियों की समस्या और निवारण के संदर्भ में आदिवासियों के परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

गोरखमुंडी के बीजों (सूखे फ़ूल) को पीसकर चूर्ण तैयार कर सेवन कराने से आंतों के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।

बच्चों को यदि पेट में कृमि (कीड़े) की शिकायत हो तो लहसून की कच्ची कलियों का 20-30 बूँद रस एक गिलास दूध में मिलाकर देने से कृमि मर कर शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।

आदिवासियों के अनुसार सूरनकंद की सब्जी अक्सर खाने वाले लोगों को पेट में कृमि की शिकायत नहीं रहती है। कच्चे सूरनकंद को छीलकर नमक के पानी में धोया जाए और लगभग 4 ग्राम कंद को सोने से पहले एक सप्ताह प्रतिदिन चबाया जाए तो पेट के कृमि बाहर निकल आते हैं।

पातालकोट के आदिवासी कच्चे सीताफल को फोड़कर सुखा लेते हैं और इसका चूर्ण तैयार करते है। इस चूर्ण को बेसन के साथ मिलाकर बच्चों को खिलाते है, जिससे पेट के कीड़े मर जाते है।

बेल के पके फलों के गूदे का रस या जूस तैयार करके पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि बेल के फलों के बजाए पत्तों का रस का सेवन किया जाए तो ज्यादा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं

पपीता के कच्चे फलों से निकलने वाले दूध को बच्चों को देने से पेट के कीड़े मर जाते है और बाहर निकल आते है। प्रतिदिन रात को आधा चम्मच रस का सेवन तीन दिनों तक कराया जाए तो पेट के कृमि मर जाते हैं।

पातालकोट के हर्बल जानकारों की मानी जाए तो पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी चूर्ण रोज सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक ताजे पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो सकते हैं।

जीरा के कच्चे बीजों को दिन में 5 से 6 बार करीब 3 ग्राम की मात्रा चबाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। आदिवासियों के अनुसार कच्चा जीरा पाचक को दुरुस्त भी करता है और गर्म प्रकृति का होने की वजह से कीड़ों को मार देता है और कीड़े शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।

कच्चे नारियल को चबाते रहने से पेट के कीड़े मर जाते हैं, डाँग- गुजरात में आदिवासी बच्चों को अक्सर कच्चा नारियल खिलाते हैं और जीरे का चूर्ण बनाकर पानी में घोलकर एक गिलास जीरा पानी का भी सेवन कराते हैं ताकि पेट के कृमि मर जाएं।

परवल और हरे धनिया की पत्तियों की समान मात्रा (20 ग्राम प्रत्येक) लेकर कुचल लिया जाए और एक पाव पानी में रात भर के लिए भिगोकर रख दिया जाए, सुबह इसे छानकर तीन हिस्से कर प्रत्येक हिस्से में थोड़ा सा शहद डालकर दिन में 3 बार रोगी को देने से पेट के कीड़े मर हो जाते हैं।

अमेरिका की GPS प्रणाली का विकल्प होगा नौवहन उपग्रह / America's GPS satellite navigation system will have the option

अमेरिका की GPS प्रणाली का विकल्प होगा नौवहन उपग्रह / America's GPS satellite navigation system will have the option
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अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया दौर शुरू करते हुए भारत ने पीएसएलवी के जरिये नौवहन को समर्पित अपना पहला उपग्रह सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है, जो देश को अमेरिका की जीपीएस प्रणाली का एक विकल्प मुहैया कराएगा।
    
इस उपलब्धि के साथ ही भारत चुनिंदा देशों में शामिल हो गया। बीती रात ठीक 11 बजकर 41 मिनट पर कुल 44 मीटर लंबे पीएसएलवी-सी22 ने यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह के साथ उड़ान भरी और आसमान के स्याह कैनवस पर गहरे सुनहरे रंग की ज्वाला का चित्र सा बन गया।
    
प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद यानी आधी रात से कुछ समय पश्चात रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। तकनीकी तौर पर मंगलवार को कक्षा में स्थापित हुआ आईआरएनएसएस-1ए उन सात उपग्रहों की श्रृंखला में से पहला उपग्रह है, जिन्हें भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-आईआरएनएसएस) के लिए छोड़ा जाना है।


आईआरएनएसएस स्पेस सेगमेंट का उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र है। 
    
आईआरएनएसएस-1ए के सफल प्रक्षेपण से उत्साहित इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने बताया कि 1,425 किग्रा वजन वाला यह उपग्रह अपने प्रक्षेपण के 20 मिनट बाद निर्धारित कक्षा में सटीक तरीके से प्रविष्ट हो गया। यह इस दुर्लभ नौवहन प्रणाली का प्रथम चरण है। उन्होंने बताया कि आईआरएनएसएस-1ए के प्रक्षेपण पर 125 करोड़ रुपये की लागत आई।
    
प्रक्षेपण के बाद राधाकृष्णन ने कहा इससे साबित होता है कि पीएसएलवी एक अत्यंत भरोसेमंद प्रक्षेपक वाहन है और इस उड़ान के साथ हम देश में अंतरिक्ष अनुप्रयोग के एक नये युग में प्रवेश कर रहे हैं, जो उपग्रह नौवहन कार्यक्रम की शुरुआत है।
    
इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी इस सफलता का जश्न मनाया और राधाकृष्णन ने कहा यह घोषणा करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है कि हमारे पीएसएलवी वाहन की यह एक और शानदार उड़ान थी। यह पीएसएलवी की लगातार 23वीं सफल उड़ान तथा पीएसएलवी के उन्नत संस्करण की चौथी सफल उड़ान थी।
    
आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोबल ऑर्बिटिंग नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएलओएनएएसएस), यूरोपियन यूनियन्स गैलीलियो (जीएनएसएस), चीन के बेइदोउ सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम और जापान के कासी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम जैसा ही होगा।
    
नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं।
    
आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह श्रंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड सेगमेंट दोनों के लिए है। आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट) के लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा (जियोसिन्क्रोनस ऑर्बिट) के लिए हैं। यह श्रृंखला वर्ष 2015 से पहले पूरी होनी है।
    
आईआरएनएसएस के इस मिशन की मियाद 10 साल की है। इस श्रृंखला का अगला उपग्रह आईआरएनएसएस 1बी वर्ष 2014 के शुरू में प्रक्षेपित किया जाएगा। समझा जाता है कि सातों उपग्रह वर्ष 2015 तक कक्षा में स्थापित कर दिए जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी।
    
राधाकृष्णन ने बताया कि 300 करोड़ रुपये ग्राउंड सेगमेंट के लिए अलग रखे गए हैं। लगभग हर उपग्रह पर 125 करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह उपग्रह उप भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा (सब-जियोसिन्क्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में 284 किमी दूर प्रक्षेपित किया गया, जो पृथ्वी का सबसे निकटतम स्थान है। इसका उच्चतम लक्ष्य 20,650 किमी (पृथ्वी का सबसे दूरस्थ स्थान) के आसपास रखा गया था और इसने उसे 20,625 किमी तक लक्ष्य प्राप्त कर लिया।
    
देर रात को यह इसरो का अब तक का पहला प्रक्षेपण था। इस बारे में संस्थान के एक अधिकारी ने बताया कक्षा के मानकों के आधार पर प्रक्षेपण का समय तय किया गया। आईआरएनएसएस-1ए के लिए आधी रात को प्रक्षेपण की जरूरत थी।
    
पूर्व में पीएसएलवी-सी22 के दूसरे चरण में इलेक्ट्रोहाइड्रोलिक कंट्रोल एक्चुएटर्स में से एक में खराबी आने की वजह से इसरो ने 12 जून को नियत आईआरएनएसएस-1ए का प्रक्षेपण एक पखवाड़े के लिए टाल दिया था। खामी दूर करने के बाद प्रक्षेपण की नयी तारीख एक जुलाई तय की गई थी