अरहर/ Cajanus cajan / pigeon pea
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सामान्य परिचय : अरहर दो प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती है। दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। यह गर्म और रूक्ष होती है जिन्हें इसकी प्रकृति के कारण हानि हो वे लोग इसकी दाल को घी में छोंककर खायें, फिर किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उसका सब्जी भी बनायी जाती है। बैंगन की सब्जी में अरहर की हरी फलियों के दाने मिलाने से अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी बनती है। अरहर की दाल में इमली अथवा आम की खटाई तथा गर्म मसाले डालने से यह अधिक रुचिकारक बनती है। अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती। इसकी दाल त्रिदोषनाशक (वात, कफ और पित्त) होने से सभी के लिए अनुकूल रहती है। अरहर के पौधे की सुकोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाए जाते हैं। इससे वे अधिक तरोताजा बनते हैं और अधिक दूध देते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत आढकी, तुवरी, शणपुष्पिका
हिंदी अरहर
बंगाली अड़हर
मराठी तुरी
तेलगू कादुल
अंग्रेजी पीजन पी
लैटिन कैजेनस इंडिकस
रंग : इसका रंग पीला और लाल होता है।
स्वाद : इसकी दाल खाने में फीकी तथा स्वादिष्ट होती है।
स्वाभाव : अरहर की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।
गुण :यह कषैली, रूक्ष, मधुर, शीतल, पचने में हल्की, ट्टटी को न रोकने वाली, वायुउत्पादक, शरीर के अंगों को सुंदर बनाने वाली एवं कफ और रक्त सम्बंधी विकारों को दूर करने वाली है। लाल अरहर की दाल, हल्की, तीखी तथा गर्म होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली (भूख को बढ़ाने वाली) और कफ, विष, खून की खराबी, खुजली, कोढ़ (सफेद दाग) तथा जठर (भोजन पचाने का भाग) के अंदर मौजूद हानिकारक कीड़ों को दूर करने वाली है। अरहर की दाल पाचक है तथा बवासीर, बुखार और गुल्म रोगों में भी यह दाल लाभकारी है।
विभिन्न रोगों में अरहर से उपचार: :
1 खुजली : -अरहर के पत्तों को जलाकर उसकी राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।
2 आधासीसी (आधे सिर का दर्द या माइग्रेन) : -अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस इकठ्ठा करके नाक में लेने से आधासीसी में लाभ होता है।
3 भांग का नशा :-अरहर की दाल को पीसकर, पानी मिलाकर पीने से भांग का नशा उतर जाता है अथवा अरहर की दाल को पानी में उबालकर या पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाना चाहिए।
4 सांप के विष पर : -अरहर की जड़ को चबाकर खाने से सांप के विष में लाभ होता है।
5 पसीना :-एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ को मिलाकर सरसों के तेल में डालकर छोंककर पीस लें। इस पाउडर से शरीर पर मालिश करने से पसीना आना बंद हो जाता है। सन्निपात की हालत में पसीना आने पर भी यह प्रयोग कर सकते हैं।
6 मुंह में छाले : -अरहर की दाल छिलको सहित पानी में भिगोकर उस पानी से कुल्ले करने पर छाले ठीक हो जाते हैं। यह गर्मी के प्रभाव दूर करती है।
7 अभिन्यास ज्वर : -अधिक पसीना आने की स्थिति में भुने हुए अरहर के बीजों का बारीक चूर्ण या शंख भस्म (राख) को शरीर पर लगायें। यदि रोगी पर इस औषधि का कोई असर न दिख रहा हो तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
8 अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना : -अरहर की दाल को पानी में भिगो दें। उसी पानी में उसे बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करें। इसके बाद उसे अंडकोष पर लगायें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक ऐसा ही करने से अंडकोष में लाभ होता है।
9 दांतों की बीमारी : -अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दांतों की पीड़ा खत्म होती है।
10 बालों के रोग (अपोपिका) : -सिर के धब्बे को खुरदरे कपड़ों से रगड़कर साफ करने के बाद अरहर की दाल पीसकर रोजाना 3 बार इसका प्रयोग करें। इसके दूसरे दिन सरसों का तेल लगाकर धूप में बैठ जाएं और 4 घण्टे बाद फिर से इसे लगायें, इसी तरह कुछ दिनों तक इसका प्रयोग करने से बाल फिर से उग आते हैं।
11 जीभ की सूजन और जलन : -जीभ में छाले पड़ना तथा जीभ के फटने पर अरहर के कोमल पत्तों को चबाएं।
12 बालों की रूसी : -अरहर की दाल छिलके सहित 1 गिलास पानी में रख दें और इसे पीसकर माथे पर लेप करें। इसके बाद सिर को धोकर कंघी करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से रूसी दूर हो जाएगी।
13 पेट की गैस बनना : -अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।
14 हिचकी : -अरहर के छिलके का धूम्रपान करने से हिचकी नहीं आती है।
15 कान की सूजन और जलन : -कान की सूजन होने पर अरहर की दाल को पीसकर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है।
16 घाव : -अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से घाव भर जाते हैं।
17 पित्त की पथरी : -अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद लगभग आधा ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।
18 स्त्री के स्तनों में दूध की अधिकता से उत्पन्न विकार : -*अरहर (रहरी, शहर) के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके स्तनों पर लगाने से दूध रुक जाता है।
*दाल को पीसकर लेप की भांति स्तनों पर लगाने से स्तनों में आई सूजन नष्ट हो जाती है।"
19 मुर्च्छा (बेहोशी) होने पर : -आधा घंटे तक अरहर की दाल को एक कप पानी में भीगने दें। इसके बाद इस पानी को रोगी की नाक में एक-एक बूंद करके डालें। कुछ देर बाद ही जब व्यक्ति होश में आ जाये तो बचे हुए पानी को रोगी को पिला दें।
20 सिर का दर्द : -अरहर के कच्चे पत्तों और हरी दूब का रस निकालकर उसे छानकर सूंघने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।
21 शरीर में सूजन : -शरीर के सूजन वाले अंग पर 4 चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है।
22 नाड़ी की जलन :-नाड़ी की जलन में अरहर (रहरी) की दाल को जल के साथ पीसकर लेप बना लें। इसके लेप को नाड़ी की जलन पर लगाने से रोग जल्द ठीक हो जाते हैं।
23 गले की सूजन और छाले : -गले के छाले दूर करने के लिए अरहर के पत्तों तथा धनिये के पत्तों को उबालकर उस पानी से कुल्ला करें।
24 गले के रोग : -रात को अरहर की दाल को पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह इस पानी को गर्म करके कम से कम दो से तीन बार कुछ देर तक कुल्ला करने से कंठ (गले) की सूजन दूर हो जाती है।
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