Tuesday 2 July 2013

आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है // Easy Tips slay the stomach is full of bugs

आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है  // Easy Tips slay the stomach is full of bugs
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सदियों पुराने पेट के कृमियों की समस्या और निवारण के ये आसान नुस्खे जो पेट के कीड़ों को पूरी तरह मार गिराते है ---------


संक्रमित भोजन और पेय पदार्थों के सेवन, घरों के आसपास की गंदगी, अधकचे भोजन का सेवन जैसी अनेक वजहें हैं जो पेट में कृमि की शिकायत बनते हैं। पेट में कृमि होने से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर काफी प्रभाव पड़ता हैं। थकान, चिड़चिड़ापन और शारीरिक दुर्बलता के अलावा चेहरे और शरीर की त्वचा पर सफेद धब्बे आदि बनना इस रोग के लक्षणों के तौर पर माने जाते हैं। स्वस्थ रहन-सहन अनेक रोगों को हमसे दूर रखता है फिर भी यदि कृमियों से आप संक्रमित हो जाएं तो घबराने की बात नहीं। हिन्दुस्तानी आदिवासियों के हर्बल नुस्खे अपनाकर आप भी प्राकृतिक हर्बल उपायों के आधार पर इस समस्या से निजात पा सकते हैं। चलिए आज जानते हैं आदिवासियों के 10 जबरदस्त हर्बल उपाय जिनका उपयोग कर आप भी पेट के कृमियों की समस्या से निपट सकते हैं।

पेट के कृमियों की समस्या और निवारण के संदर्भ में आदिवासियों के परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

गोरखमुंडी के बीजों (सूखे फ़ूल) को पीसकर चूर्ण तैयार कर सेवन कराने से आंतों के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।

बच्चों को यदि पेट में कृमि (कीड़े) की शिकायत हो तो लहसून की कच्ची कलियों का 20-30 बूँद रस एक गिलास दूध में मिलाकर देने से कृमि मर कर शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।

आदिवासियों के अनुसार सूरनकंद की सब्जी अक्सर खाने वाले लोगों को पेट में कृमि की शिकायत नहीं रहती है। कच्चे सूरनकंद को छीलकर नमक के पानी में धोया जाए और लगभग 4 ग्राम कंद को सोने से पहले एक सप्ताह प्रतिदिन चबाया जाए तो पेट के कृमि बाहर निकल आते हैं।

पातालकोट के आदिवासी कच्चे सीताफल को फोड़कर सुखा लेते हैं और इसका चूर्ण तैयार करते है। इस चूर्ण को बेसन के साथ मिलाकर बच्चों को खिलाते है, जिससे पेट के कीड़े मर जाते है।

बेल के पके फलों के गूदे का रस या जूस तैयार करके पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि बेल के फलों के बजाए पत्तों का रस का सेवन किया जाए तो ज्यादा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं

पपीता के कच्चे फलों से निकलने वाले दूध को बच्चों को देने से पेट के कीड़े मर जाते है और बाहर निकल आते है। प्रतिदिन रात को आधा चम्मच रस का सेवन तीन दिनों तक कराया जाए तो पेट के कृमि मर जाते हैं।

पातालकोट के हर्बल जानकारों की मानी जाए तो पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी चूर्ण रोज सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक ताजे पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो सकते हैं।

जीरा के कच्चे बीजों को दिन में 5 से 6 बार करीब 3 ग्राम की मात्रा चबाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। आदिवासियों के अनुसार कच्चा जीरा पाचक को दुरुस्त भी करता है और गर्म प्रकृति का होने की वजह से कीड़ों को मार देता है और कीड़े शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।

कच्चे नारियल को चबाते रहने से पेट के कीड़े मर जाते हैं, डाँग- गुजरात में आदिवासी बच्चों को अक्सर कच्चा नारियल खिलाते हैं और जीरे का चूर्ण बनाकर पानी में घोलकर एक गिलास जीरा पानी का भी सेवन कराते हैं ताकि पेट के कृमि मर जाएं।

परवल और हरे धनिया की पत्तियों की समान मात्रा (20 ग्राम प्रत्येक) लेकर कुचल लिया जाए और एक पाव पानी में रात भर के लिए भिगोकर रख दिया जाए, सुबह इसे छानकर तीन हिस्से कर प्रत्येक हिस्से में थोड़ा सा शहद डालकर दिन में 3 बार रोगी को देने से पेट के कीड़े मर हो जाते हैं।

अमेरिका की GPS प्रणाली का विकल्प होगा नौवहन उपग्रह / America's GPS satellite navigation system will have the option

अमेरिका की GPS प्रणाली का विकल्प होगा नौवहन उपग्रह / America's GPS satellite navigation system will have the option
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अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया दौर शुरू करते हुए भारत ने पीएसएलवी के जरिये नौवहन को समर्पित अपना पहला उपग्रह सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है, जो देश को अमेरिका की जीपीएस प्रणाली का एक विकल्प मुहैया कराएगा।
    
इस उपलब्धि के साथ ही भारत चुनिंदा देशों में शामिल हो गया। बीती रात ठीक 11 बजकर 41 मिनट पर कुल 44 मीटर लंबे पीएसएलवी-सी22 ने यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह के साथ उड़ान भरी और आसमान के स्याह कैनवस पर गहरे सुनहरे रंग की ज्वाला का चित्र सा बन गया।
    
प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद यानी आधी रात से कुछ समय पश्चात रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। तकनीकी तौर पर मंगलवार को कक्षा में स्थापित हुआ आईआरएनएसएस-1ए उन सात उपग्रहों की श्रृंखला में से पहला उपग्रह है, जिन्हें भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-आईआरएनएसएस) के लिए छोड़ा जाना है।


आईआरएनएसएस स्पेस सेगमेंट का उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र है। 
    
आईआरएनएसएस-1ए के सफल प्रक्षेपण से उत्साहित इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने बताया कि 1,425 किग्रा वजन वाला यह उपग्रह अपने प्रक्षेपण के 20 मिनट बाद निर्धारित कक्षा में सटीक तरीके से प्रविष्ट हो गया। यह इस दुर्लभ नौवहन प्रणाली का प्रथम चरण है। उन्होंने बताया कि आईआरएनएसएस-1ए के प्रक्षेपण पर 125 करोड़ रुपये की लागत आई।
    
प्रक्षेपण के बाद राधाकृष्णन ने कहा इससे साबित होता है कि पीएसएलवी एक अत्यंत भरोसेमंद प्रक्षेपक वाहन है और इस उड़ान के साथ हम देश में अंतरिक्ष अनुप्रयोग के एक नये युग में प्रवेश कर रहे हैं, जो उपग्रह नौवहन कार्यक्रम की शुरुआत है।
    
इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी इस सफलता का जश्न मनाया और राधाकृष्णन ने कहा यह घोषणा करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है कि हमारे पीएसएलवी वाहन की यह एक और शानदार उड़ान थी। यह पीएसएलवी की लगातार 23वीं सफल उड़ान तथा पीएसएलवी के उन्नत संस्करण की चौथी सफल उड़ान थी।
    
आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोबल ऑर्बिटिंग नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएलओएनएएसएस), यूरोपियन यूनियन्स गैलीलियो (जीएनएसएस), चीन के बेइदोउ सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम और जापान के कासी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम जैसा ही होगा।
    
नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं।
    
आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह श्रंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड सेगमेंट दोनों के लिए है। आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट) के लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा (जियोसिन्क्रोनस ऑर्बिट) के लिए हैं। यह श्रृंखला वर्ष 2015 से पहले पूरी होनी है।
    
आईआरएनएसएस के इस मिशन की मियाद 10 साल की है। इस श्रृंखला का अगला उपग्रह आईआरएनएसएस 1बी वर्ष 2014 के शुरू में प्रक्षेपित किया जाएगा। समझा जाता है कि सातों उपग्रह वर्ष 2015 तक कक्षा में स्थापित कर दिए जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी।
    
राधाकृष्णन ने बताया कि 300 करोड़ रुपये ग्राउंड सेगमेंट के लिए अलग रखे गए हैं। लगभग हर उपग्रह पर 125 करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह उपग्रह उप भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा (सब-जियोसिन्क्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में 284 किमी दूर प्रक्षेपित किया गया, जो पृथ्वी का सबसे निकटतम स्थान है। इसका उच्चतम लक्ष्य 20,650 किमी (पृथ्वी का सबसे दूरस्थ स्थान) के आसपास रखा गया था और इसने उसे 20,625 किमी तक लक्ष्य प्राप्त कर लिया।
    
देर रात को यह इसरो का अब तक का पहला प्रक्षेपण था। इस बारे में संस्थान के एक अधिकारी ने बताया कक्षा के मानकों के आधार पर प्रक्षेपण का समय तय किया गया। आईआरएनएसएस-1ए के लिए आधी रात को प्रक्षेपण की जरूरत थी।
    
पूर्व में पीएसएलवी-सी22 के दूसरे चरण में इलेक्ट्रोहाइड्रोलिक कंट्रोल एक्चुएटर्स में से एक में खराबी आने की वजह से इसरो ने 12 जून को नियत आईआरएनएसएस-1ए का प्रक्षेपण एक पखवाड़े के लिए टाल दिया था। खामी दूर करने के बाद प्रक्षेपण की नयी तारीख एक जुलाई तय की गई थी