तुलसी/Basil
तुलसी एक ऐसा पौधा है, जो कई तरह के अद्भुत औषधीय गुणों से भरपूर है। हिंदू धर्म में तुलसी को इसके अनगिनत औषधीय गुणों के कारण पूज्य माना गया है। तुलसी से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताएं है और तुलसी को घर में लगाना अनिवार्य माना गया है। दरअसल, यह परंपरा यूं ही नहीं बनाई गई। जिस तरह से हमारी हर परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण है, ठीक उसी तरह घर में तुलसी लगाने और उसकी पूजा करने के पीछे भी कुछ वैज्ञानिक कारण हैं।
जब तुलसी के निरंतर प्रयोग से हमारे ऋषि-मुनियों ने यह अनुभव किया कि इस पौधे में कई बीमारियों को ठीक करने की अद्भुत क्षमता है और इसे लगाने से आसपास का माहौल भी साफ-सुथरा व स्वास्थ्यप्रद रहता है, तो उन्होंने हर घर में कम से कम एक पौधा लगाने और उसकी अच्छे से देखभाल करने को धार्मिक कर्तव्य कह कर प्रचारित किया।
धीरे-धीरे तुलसी के स्वास्थ्य प्रदान करने वाले गुणों के कारण इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि तुलसी का पूजन किया जाने लगा। दरअसल, यह मान्यता है कि जिस वस्तु का उपयोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है, उसका सकारात्मक प्रभाव बहुत जल्दी दिखाई पड़ता है।
तुलसी सिर्फ बीमारियों पर ही नहीं, बल्कि मनुष्य के आंतरिक भावों और विचारों पर भी अच्छा प्रभाव डालती है। बारिश के मौसम में तुुलसी के सेवन का विशेष महत्व है। जो लोग बारिश के मौसम में नियमित रूप से पांच पत्तों का सेवन करते हैं, उन्हें मौसम परिवर्तन के साथ होने वाली बीमारियां, जैसे सर्दी, खांसी और बुखार आदि नहीं होती।
त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश तुलसी यदि।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रायण शतं बिना।।
तुलसी गंधमादाय यत्र गच्छन्ति: मारुत:।
दिशो दशश्च पूतास्तुर्भूत ग्रामश्चतुर्विध:।।
*यदि सुबह, दोपहर और शाम को तुलसी का सेवन किया जाए तो उससे शरीर इतना शुद्ध हो जाता है, जितना अनेक चांद्रायण व्रत के बाद भी नहीं होता।
तुलसी की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहां तक का वातावरण और निवास करने वाले जीव निरोगी और पवित्र हो जाते हैं।
तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में इसे विशेष महत्व दिया गया है।
हिक्काज विश्वास पाश्र्वमूल विनाशिन:।
पितकृतत्कफवातघ्नसुरसा: पूर्ति: गन्धहा।।
*सुरसा यानी तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दुर्गंध भी दूर करती है।
तुलसी कटु कातिक्ता हद्योषणा दाहिपित्तकृत।
दीपना कृष्टकृच्छ् स्त्रपाश्र्व रूककफवातजित।।
*तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।
तुलसी तुरवातिक्ता तीक्ष्णोष्णा कटुपाकिनी।
रुक्षा हृद्या लघु: कटुचौहिषिताग्रि वद्र्धिनी।।
जयेद वात कफ श्वासा कारुहिध्मा बमिकृमनीन।
दौरगन्ध्य पार्वरूक कुष्ट विषकृच्छन स्त्रादृग्गद:।।
*तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है।
तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो, तो उसे खत्म कर दे।
शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।
तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है।
*रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।
*श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।
*तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।
*एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।
*तुलसी की एक और जाति जो बहुत उपयोगी है, वह है बर्बरी तुलसी। इसके बीजों का प्रयोग वीर्य को गाढ़ा करने वाली दवा के रूप में किया जाता है।मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए।
इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर लें, आराम मिलेगा।
*साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
*तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।
*तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।
*चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।
*शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
*किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
*फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।
*तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
*तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।
*तुलसी थकान मिटाने वाली औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।
*प्रतिदिन 4 से 5 बार तुलसी की 6 से 7 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।
*तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।
*दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।