Saturday 6 July 2013

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects

माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना / Menstruation (menses) to remove all defects
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माहवारी (मासिक धर्म) के सभी दोषों को दूर करना

1. किशमिश: पुरानी किशमिश को 3 ग्राम
की मात्रा में लेकर इसे लगभग 200 मिलीलीटर पानी में
रात को भिगोकर रख दें। सुबह इसे उबालकर रख लें। जब
यह एक चौथाई की मात्रा में रह जाए तो इसे छानकर सेवन
करने से मासिक-धर्म के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।

2. तिल: काले तिल 5 ग्राम को गुड़ में मिलाकर
माहवारी (मासिक) शुरू होने से 4 दिन पहले सेवन
करना चाहिए। जब मासिक धर्म शुरू हो जाए तो इसे बंद
कर देना चाहिए। इससे माहवारी सम्बंधी सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं।
लगभग 8 चम्मच तिल, एक गिलास पानी में गुड़ या 10 कालीमिर्च को (इच्छानुसार) पीसकर गर्म कर लें।
आधा पानी बच जाने पर 2 बार रोजाना पीयें, यह मासिक-
धर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिकस्राव तक सेवन
करें। ऐसा करने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
14 से 28 मिलीलीटर बीजों का काढ़ा एक ग्राम मिर्च
के चूर्ण के साथ दिन में तीन बार देने से मासिक-धर्म खुलकर आता है।
तिल, जौ और शर्करा का चूर्ण शहद में मिलाकर
खिलाने से प्रसूता स्त्रियों की योनि से खून
का बहना बंद हो जाता है।

3. ज्वार: ज्वार के भुट्टे को जलाकर इसकी राख को छान
लें। इस राख को 3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह
पहले देना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए
तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

4. चौलाई: चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक
पीस लें। इसे लगभग 5 ग्राम मात्रा में सुबह के समय
खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिनों पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

5. असगंध: असगंध और खाण्ड को बराबर मात्रा में लेकर
बारीक पीस लें, फिर इसे 10 ग्राम लेकर पानी से
खाली पेट मासिक धर्म शुरू होने से लगभग 7 दिन पहले
सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन
बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार
नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

6. रेवन्दचीनी: रेवन्दचीनी 3 ग्राम की मात्रा में सुबह के
समय खाली पेट माहवारी (मासिक धर्म) शुरू होने से
लगभग 7 दिन पहले सेवन करें। जब मासिक-धर्म शुरू
हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे
मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

7. कपूरचूरा: आधा ग्राम कपूरचूरा में मैदा मिलाकर 4
गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक
गोली का सेवन माहवारी शुरू होने से लगभग 4 दिन पहले
स्त्री को सेवन करना चाहिए। मासिक-धर्म शुरू होने के
बाद इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इससे मासिक-धर्म
के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं। सुरेश चौहान

8. राई: मासिक-धर्म में दर्द होता हो या स्राव कम
होता हो तो गुनगुने पानी में राई के चूर्ण को मिलाकर,
स्त्री को कमर तक डूबे पानी में बैठाने से लाभ होता है।

9. मूली: मूली के बीजों का चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ 3-3
ग्राम सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) का अवरोध नष्ट
होता है। सुरेश चौहान

10. अडूसा (वासा): अड़ूसा के पत्ते ऋतुस्त्राव
(मासिकस्राव) को नियंत्रित करते हैं। रजोरोध
(मासिकस्राव अवरोध) में वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व
गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को 500
मिलीलीटर पानी में पका लें। चतुर्थाश शेष रहने पर यह
काढ़ा कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

11. कलौंजी: 2-3 महीने तक भी मासिक-धर्म के न होने
पर और पेट में भी दर्द रहने पर एक कप गर्म पानी में
आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 2 चम्मच शहद
मिलाकर सुबह-शाम को खाना खाने के बाद सोते समय 30
दिनों तक पियें। नोट: इस प्रयोग के दौरान आलू और
बैगन नहीं खाना चाहिए। सुरेश चौहान

12. विदारीकन्द: विदारीकन्द का चूर्ण 1 चम्मच और
मिश्री 1 चम्मच दोनों को पीसकर 1 चम्मच घी के साथ
मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से मासिक-धर्म
में अधिक खून आना बंद होता है।
विदारीकन्द के 1 चम्मच चूर्ण को घी और चीनी के साथ
मिलाकर चटाने से मासिक-धर्म में अधिक खून आना बंद हो जाता है।

13. उलटकंबल: उलटकंबल की जड़ की छाल का गर्म
चिकना रस 2 ग्राम की मात्रा में कुछ समय तक रोज देने
से हर तरह के कष्ट से होने वाले मासिक-धर्म में लाभ
मिलता है।सुरेश चौहान
उलटकंबल की जड़ की छाल को 6 ग्राम लेकर 1 ग्राम
कालीमिर्च के साथ पीसकर रख लें। इसे मासिक धर्म से 7 दिनों पहले से और जब तक मासिक-धर्म होता रहता है
तब तक पानी के साथ लेने से मासिक-धर्म नियमित
होता है। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भाशय
को शक्ति प्राप्त होती है।
अनियमित मासिक-धर्म के साथ ही, गर्भाशय, जांघ
और कमर में दर्द हो तो उलटकंबल की जड़ का रस 4 ग्राम निकालकर चीनी के साथ सेवन करने से 2 दिन में ही लाभ
मिलता है।
उलटकंबल की 50 ग्राम सूखी छाल को जौ कूट
यानी पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर
काढ़ा तैयार करें। यह काढ़ा उचित मात्रा में दिन में 3 बार
लेने से कुछ ही दिनों में मासिक-धर्म नियमित समय पर होने लग जाता है। इसका प्रयोग मासिक धर्म शुरू होने
से 7 दिन पहले से मासिक-धर्म आरम्भ होने तक दें।
उलटकंबल की जड़ की छाल का चूर्ण 4 ग्राम और
कालीमिर्च के 7 दाने सुबह-शाम पानी के साथ मासिक-
धर्म के समय 7 दिन तक सेवन करें। 2 से 4 महीनों तक
यह प्रयोग करने से गर्भाशय के सभी दोष मिट जाते हैं। यह प्रदर और बन्ध्यत्व की सर्वश्रेष्ठ औषधि है। सुरेश चौहान

14. अनन्नास: अनन्नास के कच्चे फलों के 10
मिलीलीटर रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1
ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक-धर्म की रुकावट
दूर होती है।
अनान्नास के पत्तों का काढ़ा एक चौथाई ग्राम पीने से
भी मासिक-धर्म की रुकावट दूर होती है। सुरेश चौहान

15. बथुआ: 2 चम्मच बथुआ के बीज 1 गिलास पानी में
उबालें। आधा पानी बच जाने पर छानकर पीने से रुका हुआ
मासिकधर्म खुलकर साफ आता है।

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) / Blennenteria (leukorrhea)
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1. आंवला: आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।
2. झरबेरी: झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
3. नागकेशर: नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
4. रोहितक: रोहितक की जड़ को पीसकर पानी के साथ लेने से श्वेतप्रदर के रोग में लाभ मिलता है।
5. केला: 2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।
6. गुलाब: गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर इसे बारीक पीसकर बने पाउडर को लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह और शाम दूध के साथ लेने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा मिलता है।
7. मुलहठी: मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।
8. शिरीष: शिरीष की छाल का चूर्ण 1 ग्राम को देशी घी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
9. बला: बला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ प्राप्त होता है।
10. बड़ी इलायची: बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर समान मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम को लेने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
11. ककड़ी: ककड़ी के बीज, कमल, ककड़ी, जीरा और चीनी (शक्कर) को बराबर मात्रा में लेकर 2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
12. जीरा: जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
13. चना: सेंके हुए चने पीसकर उसमें खांड मिलाकर खाएं। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पीयें, इससे श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) गिरना बंद हो जाता है।
14. जामुन: छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक रोज खाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
15. धाय :स्त्रियों के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में धातकी (धाय) के फूलों का चूर्ण 2 चम्मच लगभग 3 ग्राम शहद के साथ सुबह खाली पेट व सायंकाल भोजन से एक घंटा पहले सेवन करने से लाभ होता है।
*धातकी के फूलों का चूर्ण और मिश्री 1-1 चम्मच की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से दूध या जल के साथ कुछ समय तक सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
16. दूधी: 2 ग्राम दूधी की जड़ को पीसकर और छानकर दिन में 3 बार पिलाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) और रक्तप्रदर नष्ट होता है।
17. फिटकरी: चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। 18. ककड़ी: ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।
19. गाजर: गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
20. मेथी:मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है।
रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है।
*मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
*गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।

21. ईसबगोल: ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से श्वेत प्रदर में बहुत लाभ होता है।
22. सफेद पेठा: औरतों के श्वेत प्रदर (जरायु से पीले, मटमैले या सफेद पानी जैसा तरल या गाढ़े स्राव के बहने को) रोग (ल्यूकोरिया), अधिक मासिक का स्राव (बहना), खून की कमी आदि रोगों में पेठे का साग घी में भूनकर खाने या उसके रस में चीनी को मिलाकर सुबह-शाम आधा-आधा गिलास पीने से आराम मिलता है।
23. गूलर:रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से लाभ श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में मिलता है
*मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने और गर्भाशय में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है।
*गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है।
*1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

24. गुलाब: श्वेतप्रदर, पेशाब में जलन हो तो गुलाब के ताजे फूल और 50 ग्राम मिश्री दोनों को पीसकर, आधा गिलास पानी में मिलाकर रोजाना 10 दिनों तक पीने से लाभ मिलता है।
25. कुलथी: श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में 100 ग्राम कुलथी 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर बचे पानी छानकर पीने से लाभ मिलेगा।
26. नीम:
नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है।
*कफज रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।
27. लोध: लोध और वट के पेड़ की छाल मिलाकर काढ़ा बना लें। 2 चम्मच की मात्रा में यह काढ़ा रोजाना सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ होता है।
28. बबूल:बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढे़ में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी।
*बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।
29. बकायन: बकायन के बीज और श्वेतचन्दन समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्युकोरिया) में लाभ मिलता है।
30. अर्जुन की छाल: महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर और पेशाब की जलन को ठीक करने के लिए अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का सेवन करना चाहिए।

सरसों सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases

 सिर्फ सब्जी में ही काम नहीं आती, इससे ठीक हो जाती है ये बड़ी बीमारियां // Mustard does not just work in the vegetable, it is precisely these major diseases
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सरसों की प्रजाति का राई एक महत्वपूर्ण मसाले के तौर पर हर भारतीय रसोई में उपयोग में लाया जाता है। सारे भारतवर्ष में राई की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। राई का वानस्पतिक नाम ब्रासिका नाईग्रा है और इसे काली सरसों के नाम से भी जाना जाता है। आदिवासी अंचलों में इसे मसाले के तौर पर अपनाने के अलावा अनेक हर्बल नुस्खों के रूप में भी आजमाया जाता है। चलिए आज जानकारी लेंगे आदिवासियों के उन नुस्खों के बारे में जिनमे राई को बतौर औषधि इस्तेमाल किया जाता है।

राई के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

राई के बीज में मायरोसीन, सिनिग्रिन जैसे रसायन पाए जाते है, ये रसायन त्वचा रोगों के लिए हितकर हैं। राई को रात भर पानी में डुबोकर रखा जाए और सुबह इस पानी को त्वचा पर लगाया जाए तो त्वचा रोगों में आराम मिल जाता है।

आदिवासियों के अनुसार राई के बीजों का लेप ललाट पर लगाया जाए तो सरदर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता है। कुछ इलाकों में आदिवासी इस लेप में कर्पूर भी मिला देते हैं ताकि जल्दी असर हो।

चुटकी भर राई के चूर्ण को पानी के साथ घोलकर बच्चों को देने से वे रात में बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते है।

यदि किसी व्यक्ति को लगातार दस्त हो रहें हो तो हथेली में थोड़ी सी राई लेकर हल्के गुनगुने पानी डाल दिया जाए और रोगी को पिला दिया जाए तो काफी आराम मिलता है। माना जाता है कि राई दस्त रोकने के लिए अतिसक्षम होती है।

राई के बीजों का लेप और कपूर का मिश्रण जोड़ों पर मालिश करने से आमवात और जोड़ के दर्द में फायदा होता है। पातालकोट के कई हिस्सों में आदिवासी इस मिश्रण में थोड़ा से केरोसिन तेल डालकर मालिश करते हैं। कहा जाता है कि यह फार्मुला दर्द को खींच निकालता है।

राई के घोल को सिर पर लगाने से सर के फोड़े, फुन्सी और बालों का झड़ना भी बंद हो जाता है। डाँगी हर्बल जानकारों के अनुसार ऐसा करने से सिर से डेंड्रफ भी छूमंतर हो जाते हैं।

राई को बारीक पीसकर यदि दर्द वाले हिस्से पर लेपित किया जाए तो आधे सिर का दर्द माईग्रेन में तुरंत आराम मिलता है।

धुम्रपान से काले हुए होंठों को लाल या सामान्य करने के लिए अकरकरा और राई की समान मात्रा पीसकर दिन में तीन चार बार लगाते रहने से कुछ ही दिनों में होठों का रंग सामान्य हो जाता है।

राई के तेल को गर्म कर दो तीन बूँदे कान डाला जाए तो कान में दर्द होना बंद हो जाता है। जिन्हें कम सुनाई देता हो या बहरापन की शिकायत हो, उन्हें भी इस फार्मुले को उपयोग में लाना चाहिए, फायदा होता है।


अरहर / Cajanus cajan / pigeon pea


अरहर/ Cajanus cajan / pigeon pea

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सामान्य परिचय : अरहर दो प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती है। दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। यह गर्म और रूक्ष होती है जिन्हें इसकी प्रकृति के कारण हानि हो वे लोग इसकी दाल को घी में छोंककर खायें, फिर किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उसका सब्जी भी बनायी जाती है। बैंगन की सब्जी में अरहर की हरी फलियों के दाने मिलाने से अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी बनती है। अरहर की दाल में इमली अथवा आम की खटाई तथा गर्म मसाले डालने से यह अधिक रुचिकारक बनती है। अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती। इसकी दाल त्रिदोषनाशक (वात, कफ और पित्त) होने से सभी के लिए अनुकूल रहती है। अरहर के पौधे की सुकोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाए जाते हैं। इससे वे अधिक तरोताजा बनते हैं और अधिक दूध देते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत आढकी, तुवरी, शणपुष्पिका
हिंदी अरहर
बंगाली अड़हर
मराठी तुरी
तेलगू कादुल
अंग्रेजी पीजन पी
लैटिन कैजेनस इंडिकस

रंग : इसका रंग पीला और लाल होता है।

स्वाद : इसकी दाल खाने में फीकी तथा स्वादिष्ट होती है।

स्वाभाव : अरहर की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।

गुण :यह कषैली, रूक्ष, मधुर, शीतल, पचने में हल्की, ट्टटी को न रोकने वाली, वायुउत्पादक, शरीर के अंगों को सुंदर बनाने वाली एवं कफ और रक्त सम्बंधी विकारों को दूर करने वाली है। लाल अरहर की दाल, हल्की, तीखी तथा गर्म होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली (भूख को बढ़ाने वाली) और कफ, विष, खून की खराबी, खुजली, कोढ़ (सफेद दाग) तथा जठर (भोजन पचाने का भाग) के अंदर मौजूद हानिकारक कीड़ों को दूर करने वाली है। अरहर की दाल पाचक है तथा बवासीर, बुखार और गुल्म रोगों में भी यह दाल लाभकारी है।

विभिन्न रोगों में अरहर से उपचार: :


1 खुजली : -अरहर के पत्तों को जलाकर उसकी राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।

2 आधासीसी (आधे सिर का दर्द या माइग्रेन) : -अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस इकठ्ठा करके नाक में लेने से आधासीसी में लाभ होता है।

3 भांग का नशा :-अरहर की दाल को पीसकर, पानी मिलाकर पीने से भांग का नशा उतर जाता है अथवा अरहर की दाल को पानी में उबालकर या पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाना चाहिए।

4 सांप के विष पर : -अरहर की जड़ को चबाकर खाने से सांप के विष में लाभ होता है।

5 पसीना :-एक मुट्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ को मिलाकर सरसों के तेल में डालकर छोंककर पीस लें। इस पाउडर से शरीर पर मालिश करने से पसीना आना बंद हो जाता है। सन्निपात की हालत में पसीना आने पर भी यह प्रयोग कर सकते हैं।

6 मुंह में छाले : -अरहर की दाल छिलको सहित पानी में भिगोकर उस पानी से कुल्ले करने पर छाले ठीक हो जाते हैं। यह गर्मी के प्रभाव दूर करती है।

7 अभिन्यास ज्वर : -अधिक पसीना आने की स्थिति में भुने हुए अरहर के बीजों का बारीक चूर्ण या शंख भस्म (राख) को शरीर पर लगायें। यदि रोगी पर इस औषधि का कोई असर न दिख रहा हो तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

8 अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना : -अरहर की दाल को पानी में भिगो दें। उसी पानी में उसे बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करें। इसके बाद उसे अंडकोष पर लगायें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक ऐसा ही करने से अंडकोष में लाभ होता है।

9 दांतों की बीमारी : -अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दांतों की पीड़ा खत्म होती है।

10 बालों के रोग (अपोपिका) : -सिर के धब्बे को खुरदरे कपड़ों से रगड़कर साफ करने के बाद अरहर की दाल पीसकर रोजाना 3 बार इसका प्रयोग करें। इसके दूसरे दिन सरसों का तेल लगाकर धूप में बैठ जाएं और 4 घण्टे बाद फिर से इसे लगायें, इसी तरह कुछ दिनों तक इसका प्रयोग करने से बाल फिर से उग आते हैं।

11 जीभ की सूजन और जलन : -जीभ में छाले पड़ना तथा जीभ के फटने पर अरहर के कोमल पत्तों को चबाएं।

12 बालों की रूसी : -अरहर की दाल छिलके सहित 1 गिलास पानी में रख दें और इसे पीसकर माथे पर लेप करें। इसके बाद सिर को धोकर कंघी करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से रूसी दूर हो जाएगी।

13 पेट की गैस बनना : -अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।

14 हिचकी : -अरहर के छिलके का धूम्रपान करने से हिचकी नहीं आती है।

15 कान की सूजन और जलन : -कान की सूजन होने पर अरहर की दाल को पीसकर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है।

16 घाव : -अरहर के कोमल पत्ते पीसकर लगाने से घाव भर जाते हैं।

17 पित्त की पथरी : -अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद लगभग आधा ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।

18 स्त्री के स्तनों में दूध की अधिकता से उत्पन्न विकार : -*अरहर (रहरी, शहर) के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके स्तनों पर लगाने से दूध रुक जाता है।
*दाल को पीसकर लेप की भांति स्तनों पर लगाने से स्तनों में आई सूजन नष्ट हो जाती है।"

19 मुर्च्छा (बेहोशी) होने पर : -आधा घंटे तक अरहर की दाल को एक कप पानी में भीगने दें। इसके बाद इस पानी को रोगी की नाक में एक-एक बूंद करके डालें। कुछ देर बाद ही जब व्यक्ति होश में आ जाये तो बचे हुए पानी को रोगी को पिला दें।

20 सिर का दर्द : -अरहर के कच्चे पत्तों और हरी दूब का रस निकालकर उसे छानकर सूंघने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।

21 शरीर में सूजन : -शरीर के सूजन वाले अंग पर 4 चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है।

22 नाड़ी की जलन :-नाड़ी की जलन में अरहर (रहरी) की दाल को जल के साथ पीसकर लेप बना लें। इसके लेप को नाड़ी की जलन पर लगाने से रोग जल्द ठीक हो जाते हैं।

23 गले की सूजन और छाले : -गले के छाले दूर करने के लिए अरहर के पत्तों तथा धनिये के पत्तों को उबालकर उस पानी से कुल्ला करें।

24 गले के रोग : -रात को अरहर की दाल को पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह इस पानी को गर्म करके कम से कम दो से तीन बार कुछ देर तक कुल्ला करने से कंठ (गले) की सूजन दूर हो जाती है।