Monday 14 July 2014

जौ के औषधीय गुण//// Medicinal properties of barley

                 जौ के औषधीय गुण//// Medicinal properties of barley

जौ पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। संस्कृत में इसे "यव" कहते हैं। रूस, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में यह मुख्यत: पैदा होता है।

जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। गेंहू , जौ और चने को बराबर मात्रा में पीसकर आटा बनाने से मोटापा कम होता है और ये बहुत पौष्टिक भी होता है .राजस्थान
में भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए सुबह सुबह जौ की राबड़ी का सेवन किया जाता है .

अगर आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आपका पारा तुरंत चढ़ता है तो फिर जौ को दवा की तरह खाएँ। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जौ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।कच्चा या पकाया हुआ जौ नहीं बल्कि पके हुए जौ का छिलका ब्लड प्रेशर से बहुत ही कारगर तरीके से लड़ता है।

यह नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायनिक पदार्थे के निर्माण को बढ़ा देता है और उनसे खून की नसें तनाव मुक्त हो जाती हैं।
इसमें फोलिक विटामिन भी पाया जाता है। यही कारण है कि इसके सेवन से रक्तचाप मधुमेह पेट एवं मूष संबंधी बीमारी गुर्दे की पथरी याद्दाश्त की समस्या आदि से निजात दिलाता है।इसमें एंटी कोलेस्ट्रॉल तत्व भी पाया जाता है।यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और गुजरात की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।

इसका उपयोग औषधि के रूप मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय गुण है :

* कंठ माला- जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है।
* मधुमेह (डायबटीज)- छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।
* जलन- गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
* मूत्रावरोध- जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।
* गले की सूजन- थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।
* ज्वर- अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी शांत हो जाती है।
* मस्तिष्क का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
* अतिसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।
* मोटापा बढ़ाने के लिये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।
* धातु-पुष्टिकर योग- छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से धातु सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं ।
* पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
* कर्ण शोध व पित्त- पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
* आग से जलना- तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।
* जौ की राख को पानी में खूब उबालने से यवक्षार बनता है जो किडनी को ठीक कर देता है |


                                 

No comments:

Post a Comment